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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 215 मस नहीं हुई। अंत में गुणावली सास के यहाँ से उठकर वापस अपने महल में चली आई, लेकिन अब वह इस चिता से अत्यंत उद्भिग्न हो गई कि कहीं सास नया उत्पात न मचा दे। बहू गुणावली के चले जाते ही वीरमती ने अपने सिद्ध किए हुए मंत्रतंत्र के अधिष्ठायक देवों की साधना करके उन सबको बुला लिया। आए हुए देवताओं को वीरमती ने आज्ञा दी, "ऐसा उपाय करो जिससे चंद्रकुमार लौट कर आभापुरी न आसके। अगर उसे रोकना संभव / न हुआ, तो उसका काम वहीं तमाम कर दो।" वीरमती की आज्ञा सुन कर देवता भी क्षणभर के लिए विचारमग्न ही गए। फिर उन्होंने वीरमती से कहा, "हे रानी, यह कार्य हमसे नहीं हो सकेगा। इसका कारण यह है कि सूरजकुंड के पानी के प्रभाव से चंद्रकुमार को मनुष्यत्व की प्राप्ति हुई है। उनके मनुष्यत्व को फिर से मिटाने की शक्ति अब हममें नहीं है। सूरजकुंड के देवता हमसे बहुत अधिक बलवान् है। इस समय सूरजकुंड के सभी देवता चंद्रकुमार की दिनरात रक्षा कर रहे है। इसलिए यह काम छोड़कर हमारे लिए योग्य कोई अन्य काम हो, तो बताइए। चंद्रकुमार का बाल भी बाँका करने की ताकत अब हम में नहीं है। रानी जी, हमारी तो आपको भी यह सलाह है कि आप अपने पुत्र चंद्रकुमार के प्रति अपने मन में होनेवाला दुर्भाव छोड़ दीजिए। आप उन्हें आभापुरी का राज्य सहर्ष सौंप दीजिए और उसके साथ हिलमिल कर रहिए। यदि आप हमारी यह सलाह न माने तो यह बात निश्चित जान लीजिए कि आपके प्राण भी सुरक्षित नहीं हैं। हे रानी, यह बात मत भूलिए कि सौ दिन सास के हुए तो एक दिन बहू का भी आता _हैं। इसलिए अब नया उत्पात मचाए बिना शांति से रहने में ही आपकी खैरियत है।" इतना कह कर वहाँ आए हुए सभी देवता वहाँ चुपचाप खड़े रह गए / देवताओं की सलाह वास्तव में वीरमती के लिए बहुत लाभदायक और आगे चलकर आनेवाले संकट का इशारा भी देनेवाली थी। लेकिन कहते हैं न ? 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि।' . वीरमती की ठीक यही स्थिति हुई / देवताओं की सलाह सुन कर वीरमती सयानी न बनी बल्कि वह और अधिक क्रुद्ध हो गई / क्रुद्धा आधिन की तरह बिगड़ी हुई वीरमती की देवताओं ने फिर से समझाने की भरसक कोशिश की। लेकिन दुष्ट वीरमती ने अपना दुराग्रह नछोड़ा। इसलिए अंत में नाराज होकर आए हुए सभी देवता अपने-अपने स्थान की ओर चले गए। देवताओं के वहाँ से चले जाने के बाद वीरमती ने सुबुद्धि मंत्री को बुलाकर उसे जो घटित हुआ था वह सब कह सुनाया। उसने मंत्री को यह भी बताया कि मैं विमलापुरी जाने की बात सोच रही हूँ। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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