________________ 'चन्द्रराजर्षि चरित्र 207 नश्चित हैं। इसलिए मुझे उसे अपने जीवन में कभी नहीं भूलना चाहिए। अगर मैंने उसे भुला I, तो वह उसके प्रति अन्याय होगा। . __इस तरह विचार करते-करते सुबह हुई / प्रात:कर्मो से निवृत होकर चंद्र राजा ने अपनी रानी गुणावली को एक पत्र लिखा / अपनी ही लिखावट में लिखा हुआ पत्र राजा चंद्र ने ने एक अंतरंग सेवक को बुलाकर उसे सौंपा और कहा, "देख, मेरा यह पत्र लेकर तुझे भापुरी जाना है। वहाँ जाकर एकान्त देख कर यह पत्र आभापुरी राज्य के सुबुद्धि नामक मंत्री हाथ में सौंप दे। फिर यह पत्र सचिव गुणावली को दे देगा। देख, तुझे यह काम ऐसी सावधानी करना है कि किसी को यह पता नहीं चलना चाहिए कि राजा चंद्र ने गुणावली को पत्र भेजा वहाँ द्दष्टिविष सर्प से भी अधिक क्रूर और दुष्ट मेरी विमाता वीरमती है। अगर उसे यह मालूम हो गई, तो वह कोई-न-कोई नई आफत खड़ी किए बिना नहीं रहेगी। दूसरी बात, आभापुरी में मेरी पटरानी गुणावली से एकान्त में मिल ले और मेरी ओर उसके क्षेमकुशल पूछ ले / उसे मेरा यह संदेश भी दे दे कि, "प्रिय गुणावली, अब तुझे किसी र की चिंता नहीं करनी चाहिए। अब तेरे दु:ख के दिन समाप्त हो गए और सुख का सूरज त हो गया है। अब मैं जल्द ही आभापुरी आकर बहुत लम्बी अवधि के तेरे वियोग के दु:ख नष्ट कर दूंगा / हम फिर से आभापुरी में राज्य करेंगे। मुझे सिद्धाचलतीर्थ पर स्थित जकुंड के पानी के प्रभाव से अभी-अभी मनुष्यत्व की फिर से प्राप्ति हो गई है। लेकिन तेरे ना मेरा जीवन असार है। अन्य सभी बातों का यहाँ सुख होते हुए भी तेरे वियोग के दु:ख से [ मन बहुत व्यथित रहता है / मेरे दिल में तेरा स्थान अखंडित हैं। वैसे ही तेरे दिल में मेरा स्थान अखंडित है। फिर भी तेरे हित के लिए मैं एक पते की बात कहूं कि तू अपनी सास वाग्जाल में फँस कर मुझे भुला मत दे। देशान्तर में मिलनेवाले महासुख की तुलना में मुझे देश का अल्पसुख अधिक इष्ट लगता हैं। वास्तव में मुझे तुरन्त वहाँ आने में भी कोई बाधा नहीं है। लेकिन भूतकाल में आया सा अनुभव देख कर अब पूरा विचार कर के ही कदम उठाऊँगा। देवगुरु कृपा से मैं यहाँ नंद से हूँ। तुझे जल्द से जल्द मिलने की मेरे मन में प्रबल इच्छा है / तेरा प्रेम मुझे बहुत याद ताहै / लेकिन योजनों की दूरी तय कर के तुरन्त वैसे कहाँ आ सकूँगा ? लेकिन परमात्मा पेरी एक ही प्रार्थना है कि वह हम दोनों को जल्द से जल्द मिला दे। जिस दिन और जिस क्षण दोनों का संगम होगा, पुनर्मिलन होगा, उस दिन और उस क्षण को मैं धन्य-धन्य मान लूँगा। यक्ष रूप में मिलने पर प्रारंभ से अंत तक सबकुछ विस्तार से बताऊँगा। पत्र में अधिक P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust