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________________ 208 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र स्पष्ट रूप में लिखना मुझे उचित नहीं जंचता। मेरे आने तक इतनी ही हकीकत जान कर संतोष कर ले।" गुणावली के नाम सेवक के पास यह संदेश देकर और उसे अच्छी तरह सबकुछ समझा कर चंद्रराजा ने उसे आभापुरी की ओर भेज दिया। सेवक भी शीघ्रता से चलता हुआ समय पर आभापुरी जा पहुँचा। वहाँ गुप्त रीति से जाकर वह सुबुद्धि मंत्री से मिला / राजा चंद्र का मंत्री के नाम दिया हुआ पत्र भी उसने मंत्री को सौंप दिया। राजा चंद्र का पत्र जान कर मंत्री ने बहुत उत्सुकता से पत्र खोला। पत्र पढ़ते-पढ़ते मंत्री की खुशी बढ़ती गई। पत्र के मजमून से मंत्री सुबुद्धि सब कुछ समझ गया। चंद्रराजा के सेवक को लेकर सुबुद्धि मंत्री सब की नजर बचाकर गुप्त रीति से पटरानी गुणावली के पास चले गए। सेवक ने अपने हाथ से चंद्रराजा ने स्वयं लिख कर दिया हुआ पत्र गुणावली के कर-कमलों में आदर से दे दिया। प्रिय पति का इतनी लम्बी अवधि के बाद आया हुआ और उसका ढाढस बढानेवाला पत्र पढ़ कर हर्षावेश में आई हुई गुणावली की आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। गुणावली उस पत्र को बार बार अपनी छाती से लगाती थी और बार बार खोल कर पढ़ती ही जाती थी। कुछ क्षणों के लिए ही सही, लेकिन वह पति की दुनिया में खो गई। पति के पत्र को साक्षात् पति ही मान कर वह बार बार पत्र का चुंबन करती रही। प्रेम को प्रेमी की हर चीज प्रिय लगती है। ऐसे समय पर प्रेम जड़ चेतन की भेदरेखा खींचने को नहीं बैठता है। गुणावली के नाम लिखे गए पत्र में इस प्रकार की बातें लिखी गई थीं - "प्रिय गुणावली, मैं भगवान ऋषदेव की अपार कृपा से यहाँ विमलापुरी में प्रसन्न स्थिती में हूँ। तेरी प्रसन्नता का समाचार जानने के लिए मैं अत्यंत उस्तुक हूँ। मन में तो ऐसी प्रबल इच्छा हो रही है कि तुरन्त आभापुरी आकर तुझसे मिलूँ। लेकिन तू अच्छी तरह जानती है कि आभापुरी और विमलापुरी के बीच कितना अंतर है। इसलिए इस समय पत्र से तेरी भेंट कर रहा हूँ। देशांतर में रहनेवाले दो प्रेमियों का मिलना तो पत्र द्वारा ही होता है। यहाँ का शुभ समाचार यह है कि सूरजकुंड के पानी के प्रभाव से मुझे फिर से मनुष्यत्व की प्राप्ति हो गई है। सचमुच, इस तीर्थक्षेत्र की महिमा अचिन्त्य हैं। उसकी जितनी प्रशंसा करूं, उतनी थोड़ी ही है ! मेरे पुनरूद्वार की-मनुष्यत्व प्राप्ति की-बात जान कर तुझे निश्चय ही आनंद होगा, यह मेरा विश्वास है। . यह पत्र पढ़कर स्वाभाविक ही तुझे आनंद होगा। मुझे यहाँ प्रतिदिन तेरी याद आती है। लेकिन साथ-साथ तेरी वह कनेर की छड़ी भी नहीं भूल सकता हूँ। यह बात याद आते ही P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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