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________________ 206 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र इस चमत्कार से चंद्र राजा की कीर्ति और यश चारों दिशाओं में वायुगति से फैल गया। चंद्र राजा के प्रभाव की सब लोग मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगे। पुण्यवान् मनुष्य के प्रभाव से क्या नहीं हो सकता हैं ? भगवान तीर्थीकर देव जहाँ विचरण करते हैं, उसके चारों ओर के 125 योजन के परिवेश में उनके पुण्यप्रभाव से हैजा-प्लेग महामारी आदि सात प्रकार की बीमारियाँ अपना प्रमाव नहीं दिखा सकती हैं। मकरध्वज राजा ने सिंहलनरेश को कुछ दिनों तक अपने यहाँ रखकर उनका आदरातिथ्य किया और सम्मान के साथ फिर उन्हें उनके देश की ओर रवाना कर दिया। इधर चंद्र राजा विमलापुरी के राजमहल में अपनी पत्नी प्रेमला के साथ सुखपूर्वक रहता था। कुछ दिन यों ही व्यतीत हो गए। लेकिन एक दिन राजा चंद्र को अचानक अपनी पटरानी गुणावली का स्मरण हो आया। उसके मन में विचार आया कि यहाँ तो मैं अपना समय खुशी से बिता रहा हूँ, लेकिन वहाँ आभापुरी में मेरी गुणावली के दिन मेरे विरह में कैसे कटते होंगे ? कैसे बिता रही होगी वह अपना समय ? अपने ही सुख-दु:ख विचार करने वाला मनुष्य अधम कहलाता हैं / उत्तम पुरुष तो वह 1 है जो दूसरों के भी सुख-दुःख विचार करता है ! / चंद्रराजा ने विचार किया कि मैंने आभापुरी से निकलते समय अपनी रानी गुणावली को ' | वचन दिया था कि मुझे मनुष्यत्व की प्राप्ति होते ही मैं तुरन्त तुझसे आकर मिलूंगा। लेकिन मैं | तो यहाँ अपनी नई रानी प्रेमला के प्रेमसागर में ऐसा डूब गया हूं कि महासती गुणवान् गुणावली ! को मैं बिलकुल भूल ही गया / मैंने यह उचित नहीं किया हैं। सच्चा प्रेम तो वह होता है जब - मनुष्य की अपने प्रेमपात्र के सुख से सुख मिलता हैं, और दुःख से दु:ख / इसका अर्थ यह हुआ कि मुझे अपने दिए हुए वचन के अनुसार तुरन्त आभापुरी जाकर अपनी पटरानी गुणावली से मिलना चाहिए।" प्रेम की एकमात्र शर्त यह होती है कि जिसके प्रति हृदय से किसी भी हालत में निभाना चाहिए। प्रेम 'नीर-क्षीर' जैसा होना चाहिए। E राजा चंद्र मन में विचार कर रहे थे कि गुणावली मेरी सौतेली माँ के कहने में आकर और उसके मायाजाल में फँसकर उसके अधीन हो गई, इसमें कोई आशंका की बात नहीं है / = लेकिन ऐसा होते हुए भी मेरे प्रति उसका प्रेम सच्चा, अखंडित और नि:स्वार्थ हैं, यह भी उतना P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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