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________________ 205 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र एक और बात यह है कि इन पाँचों अपराधियों को सजा करने के स्थान पर उन पर दया दिखा कर उन्हें मुक्त करने से आपका यश वृद्धिगत होगा। आपकी दया देखकर लोग आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा करेंगे / महाराज, आप यह मत सोचिए कि अपराधी को दंड मिलना ही चाहिए। इन पाँचों अपराधियों को अपने किए हुए कुकृत्य के लिए बहुत पश्चाताप हुआ-सा लगता हैं / इतने वर्षों से उन्होंने वैसे कैद की सजा तो भोग ही ली है। अब उन सबको अपने किए हुए पापकर्म के लिए पश्चात्ताप करने का और उससे अपने किए हुए पाप को धोने का सुअवसर देना हो उचित होगा। __ . महाराज, मैं इन सभी अपराधियों की ओर से आपको विश्वास दिलाता हूँ कि ये लोग अगर मुक्त कर दिए जाए, तो फिर ऐसा पापकर्म कभी नहीं करेंगे। महाराज, यह भी सोचिए कि इन लोगों ने षड्यंत्र करके आपकी इकलौती कन्या को प्राणांत संकट में डाला, इसमें वास्तव में उनका दोष नहीं है, बल्कि दोष आपकी पुत्री के अशुभ कर्मों का ही था। ये बेचारे तो इसके लिए निमित्त मात्र हो गए। सिंहलनरेश द्वारा यह पड्यंत्र रचा जाने में मुख्य कारण तो पुत्रप्रेम ही था न ? जब उन्होंने पुत्रप्रेम के कारण ही यह षड्यंत्र रचा, तो उनके साथ दयापूर्ण व्यवहार करना ही आपके लिए उचित होगा, न्यायपूर्ण होगा।" / . अपने दामाद चंद्र राजा के मुँह से ऐसी युक्तियुक्त बातें सुन कर राजा मकरध्वज के। हृदय पर उसका अत्यंत जोरदार प्रभाव हुआ। इसके फलस्वरूप राजा मकरध्वज ने इन सभी कैदियों को सजा देने का विचार छोड़ दिया। राजा ने उसी क्षण पाँचों कैदियों पर दया दिखा कर उनको बंधनमुक्त कर दिया। इस समय वहाँ प्रेमलालच्छी भी बैठी हुई थी। उसके मन में यह सब देख कर एक अच्छा विचार आया कि यहां बैठे हुए सभी लोगों को मेरे पतिदेव का प्रभाव दिखाने के लिए यह बड़ा अच्छा अवसर है। राजपुत्री उठ खड़ी हुई / वह एक सोने का थाल और सोने के ही कलश में पानी भर कर ले आई। उसने अपने पतिदेव के पाँव सोने के थाल में रखे और वह उसने स्वर्णकलश से पानी उँडेल कर पति के पाँव धोना प्रारंभ किया। पतिदेव का पदप्रक्षालन पूरा होने के बाद उसने वह चरणोदक कोढी कनकध्वज के उपर छिड़का / एक चमत्कार-सा हुआ, कोढी कनकध्वज का सारा कोढ़ क्षण भर में नष्ट हो गया / अब कोढी कनकध्वज का सारा शरीर कंचन वर्ण का और कांति मान हो गया। अचानक हुई इस घटना के कारण वहाँ उपस्थित सभी लोग दंग रह गए। P:P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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