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________________ 204 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र मकरध्वज ने सिंहलनरेश से कहा, “ऐ दुष्ट सिंहलेश ! तूने यह क्या किया ? राजा होकर तूने एक कसाई जैसा क्रूर कर्म किया ? क्या ऐसा पापकर्म करते समय तुझे जरा भी डर नहीं लगा ? मेरे साथ ऐसा छलकपट करके तूने मुझे अपना शत्रु बना लिया है। तूने सोए हुए सिंह को जगाने का दु:साहस किया है। शायद तूने तो यह सारा प्रपंच हँसी-मज़ाक के लिए किया होगा, लेकिन तेरी इस करतूत से मेरी पुत्री प्रेमला प्राणांत संकट में फँस गई, क्या तुझे इस बात का पता भी है ? अब तू अपने साथियों के साथ अपने इष्टदेवता का स्मरण कर ले। अब मैं तुममें से किसी को भी यहाँ से जिंदा छोड़नेवाला नहीं हूँ। अब तुम्हारे पाप का घड़ा भर गया और तुम्हारी मृत्यु का समय आ गया। तुम सबने मिलकर जो अत्यंत भयंकर उग्र पाप किया था, उसका बदला चुकाने का समय अब आ गया हैं। अब तुम सब बहुत थोड़ी देर के लिए ही इस संसार के मेहमान रह गए हो। तुम जैसे पापियों के मुँह देखना भी मुझे पापकर्म लगता हैं।" . इस प्रकार सिंहलनरेश, हिंसक मंत्री, कोढ़ी कनकध्वज आदि पाँच कैदियों की कटु-सेकटु शब्दों में निर्भर्त्सना करके राजा मकरध्वज ने उन सबको मृत्युदंड की सजा फटकारी / पाँचों कैदियों को अच्छी तरह मालूम था कि हमारा अपराध अक्षम्य है। इसलिए किसीने अपना बचाव करने का कोई प्रयास नहीं किया। सब के सब राजा की ओर से निर्भर्त्सना सुनते हुए चुपचाप खड़े थे। किसी की मुँह खोलने की भी हिंमत नहीं हुई। पाँचों अपराधी उनको सुनाई गई मृत्युदंड की सजा भोगने के लिए चुपचाप तैयार हो गए। लेकिन इस समय राजदरबार में राजा मकरध्वज के निकट बैठे हुए महादयालु और परोपकारी राजा चंद्र का दिल मृत्युदंड की सजा की बातें सुन कर ही द्रवित हो गया। राजा चंद्र तुरंत अपने आसन पर से उठे और उन्होंने अपने ससुर राजा मकरध्वज से कहा, "हे राजन्, ये पाँचों कैदी आपकी शरण में आए हुए हैं / शरणागत के प्राण हरण करना राजा के लिए उचित नहीं है। अपकार करनेवालों के साथ अपकार ही किया जाने लगा, तो फिर सज्जन और दुर्जन में अंतर ही क्या रहा ? इसलिए हे महाराज, आपको तो इन अपकारियों पर भी उपकार ही करना चाहिए / उपकारी पर उपकार करनेवाले इस संसार में अनेक मिलते हैं लेकिन अपकारी पर उपकार करनेवाले पुरुष विरले ही होते हैं। महाराज, दूसरी तरह से सोचा जाए, तो इन पाँच लोगों ने आप पर उपकार ही किया हैं। यदि इन लोगों ने यह षड्यंत्र न रचा होता, तो क्या आपका और मेरा संबंध हो सकता था, क्या उस स्थिति में मैं आपका दामाद बन सकता ? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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