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________________ 203 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र फिर मैं इन नटमंडली के हाथों में आया / वे भ्रमण करते-करते मुझे भी अपने साथ वहाँ ले आए। फिर प्रेमला के अत्यधिक आग्रह के कारण आप मुझे नटराज से मांग कर ले गए। पिंजड़े के साथ, मुर्गे के रूप में होनेवाले मुझको आपने प्रेमला के हाथ में सौंप दिया। वह सिद्धाचलजी की यात्रा करने के लिए जाते समय मुझे भी अपने साथ ले गई। इसके बाद क्या- | क्या हुआ, हे नरेश आप अच्छी तरह जानते हैं।" .. __ अपने दामाद चंद्र राजा की कही हुई ये सारी बातें सुन कर मकरध्वज राजा के मन में | बहुत अनुताप पैदा हो गया। राजा चंद्र की बातों से तो अब यह अक्षरश: सत्य सिद्ध हो गया था कि प्रेमला के विवाह के समय जो कुछ भी हुआ था, उसमें प्रेमला का कोई अपराध नहीं था / उस समय मैंने उसे प्राणांत दंड की सजा फटकार कर उस बेचारी पर बड़ा अन्याय किया था। / राजा मकरध्वज के मन में बहुत पश्चाताप होने लगा। - लघुकर्मी जीवों को अपने किए हुए हर दुष्कृत्य के लिए पश्चाताप होता है और यह स्वाभाविक ही है। अब राजा अपने मन में विचार करता जा रहा था कि मैं स्वयं को इतना चतुर कहलाता हूँ, लेकिन उस समय मैंने भी कोढी कनकध्वज कुमार की बात पर तुरंत विश्वास कर लिया और एक तरह से अपनी मूर्खता ही प्रकट कर दी। कल्याण हो उस सुबुद्धि मंत्री का जिन्होंने अपनी चतुराई से मुझे समझा कर बेचारी प्रेमला के प्राणों की रक्षा की। उस समय मंत्री न होते, तो बेचारी प्रेमला कब की मेरे अन्यायपूर्ण आदेश के अमल में आने से काल का ग्रास बन गई होती। __अब मकरध्वज राजा सोचने लगा कि वह कोढ़ी राजकुमार भी बड़ा दुष्ट था। उसने मेरी निष्कलंक महासती कन्या पर विषकन्या होने का झूठा इल्जाम लगाया। आज उसके कपट का पूरा भंडाफोड़ हो गया। सत्या सामने आ गया है। पाप का घड़ा एक-न-एक दिन फूटे बिना नहीं रहता, यह सच हैं। सिंहलनेश, उसके दुष्ट मंत्री हिंसक और उनके अन्य संगी-साथियों ने मिल कर एक महाभयंकर षडयंत्र रचा था। उन्होंने जो पापकर्म किया, उसके लिए मुझे उन सबको सख्त से सखत सजा देनी ही पड़ेगी। ऐसा विचार कर मकरध्वज राजा ने तुरंत अपने सेवकों को आज्ञा दी कि “जाओ, सिंहलनरेश और अन्य जो लोग कारागार में बंद किए गए हैं, उन सबको इस समय मेरे सामने लाकर खड़े करो!" / राजा की आज्ञा के अनुसार राजसेवकों ने तुरन्त जाकर सिंहलनरेश, हिंसक मंत्री आदि पाँच कैदियों को कारगार से निकाल कर राजा के सामने लाकर खड़ा कर दिया। हिंसक मंत्री के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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