________________ 202 श्री चन्द्रराजर्षि चनि किया, मैं इशारा समझ गया और टट्टी के लिए जाने का बहाना बना कर, पानी से भरा लो लेकर मैं महल के कक्ष से बाहर जाने लगा। आपकी कन्या पानी का लोटा पकड़ कर मेरे पी= पीछे आने लगी। मैंने उसे वापस जाने के लिए बहुत समझाया, पर व्यर्थ ! शंकाशील बनी आपकी कन्या वहाँ से लौटी नहीं। इसलिए कोई उपाय न देख कर मैं राजमहल में लौट आया लेकिन मैं सिंहलनरेश और हिंसक मंत्री के साथ शर्त से बँधा हुआ था / मैं वहाँ से भा निकलने की कोशिश में ही था। अब मुझे वहाँ से बाहर निकलने में बहुत देर हो रही है यह जान कर क्रुद्ध हुआ हिंसक मंत्री बाहर से अपशब्द बोलते हुए अंदर आया। अब हिंसक मंत्री ने मुड फिर वहाँ से बाहर जाने को कहा और उसने प्रेमला को जबर्दस्ती वहाँ पर ही रोक कर रखा, में साथ बाहर न जाने दिया। प्रेमला नववधू होने से लज्जा के कारण हिंसक मंत्री से कुछ कह न सकी। इसलिए वह बेचारी विवशता से दुःख से जलते हुए अंत: करण से अकेली बैठी रही। इधर मैंने बाहर निकलने का अवसर पाया। मैं झट से वहाँ से निकला और तेज गति से चलता हुआ विमलापुर के उद्यान में आ पहुँचा और जहाँ मेरी सौतेली माँ ने आम का पेड उतारा था, वहाँ पहुँच कर पेड़ के कोटर में छिप कर बैठ गया। कुछ देर बाद विमलापुरी और वहाँ हुए विवाह-महोत्सव को देख कर आनंदित हुए सास-बहू उद्यान में आम के पेड़ के पास आ पहुँची। दोनों आम के पेड पर चढ़ कर बैठी / वीरमती ने मंत्रित छड़ी से तीन बार पेड़ पर प्रहार करते ही वह आम का पेड़ आकाश में उड़ा और कुछ ही देर में आभापुरी के उद्यान में लौट आया और अपनी मूल जगह पर आकर स्थिर हो गया। सास-बहू दोनों पेड पर से नीचे उतरी और हाथपाँव मुँह धोने के लिए निकट हे होनेवाली एक बावडी पर चली गई। मैंने अवसर देखा / मैं उन दोनों की नजर बचाकर धीरे से पेड के कोटर में से बाहर निकला / मैं शीघ्र गति से चल कर गुणावली के महल में गया और पहले जहाँ सोने का बहाना बना कर लेटा था, वहीं खाट पर सिर पर रजाई ओढ़ सो गया। लेकिन दूसरे दिन मेरी सौतेली माँ वीरमती को पता चल ही गया कि मैं उनके साथ आम के पेड़ के कोटर में छिप कर रात के समय विमलापुरी गया था। मेरी सौतेली माँ बहुत क्रुद्ध है गई और उसने अपनी मंत्रविद्या से वहीं के वही मुझे मुर्गा बना दिया। P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust