________________ 201 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र मेरे मन में उनके साथ जाने को बिलकुल इच्छा नहीं थी। लेकिन उनके अत्याधिक आग्रह के वश होकर मैं उन सेवकों के साथ सिंहलनरेश के पास गया / मेरे वहाँ जाते ही सिंहलनरेश और उनके मंत्री हिंसक ने हाथ जोड़ कर मुझे प्रणाम किया और मेरा बड़ा सम्मान किया। मैंने उनसे यह पूछा कि आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है और आप मुझे इतना सम्मान देकर रोकने की कोशिश क्यों कर रहे हैं ? मेरे पूछने पर सिंहलनरेश और हिंसक मंत्री ने पहले जो मंत्रणा करके योजना बनाई थी, उसके अनुसार मुझे बताया, 'हे राज चंद्र, हम लोग हमारे पुत्र राजकुमार कनकध्वज़ का यहाँ के राजा मकरध्वज की कन्या प्रेमलालच्छी से विवाह कराने के लिए बरात लेकर आए हैं। लेकिन हमारा कनकध्वज जन्म से ही कोढ़ी है। इसलिए उसके साथ राजकुमारी प्रेमला विवाह नहीं करेगी। इसलिए तुम्हें कनकध्वज के स्थान पर वर बनकर प्रेमला से विवाह करना हैं / विवाह के बाद प्रेमलालच्छी को हमारे राजकुमार कनकध्वज को सौंप कर तुम्हें छिप कर आभापुरी लौट जाना है। हमारा इतना काम अवश्य कर दो। तुम्हारी मदद से ही हम यह संकटरूपी समुद्र तैर कर पार हो सकेंगे।" पहले तो मैंने साफ इन्कार किया और कहा कि मुझ से ऐसा अकार्य नहीं हो सकेगा। लेकिन उन लोगों ने मेरा पीछा वहीं छोड़ा। वे मुझसे गिड़गिडा कर बार बार नही कहते रहे। अंत में उनसे मुक्ति पाने का कोई अन्य उपाय नं देख कर मैंने उनकी बिनती स्वीकार कर ली औरकनकध्वज के स्थान पर वरवेश पहन कर प्रेमला से विवाह करने को तैयार हो गया। सारी तैयारियां पूरी हो गई। बरात निकली। रात के शुभ मुहूर्त पर विवाह संपन्न हो या / विवाह के बाद हम पति-पत्नी राजमहल में एक कक्ष में आकर विवाह की रस्म के भनुसार चौपट का खेल खेलने लगे। उस समय मैंने आपकी कन्या को मेरा परिचय दिया। कुछ र तक चौपट खेलने के बाद मैं भोजन करने बैठा। बीच में ही मैंने पीने के लिए पानी माँगा। गोजन-पानी करते-करते समय निकाल कर और अवसर पाकर मैंने अपने बारे में अनेक बातें मापकी पुत्री को संकेत से बता दीं। उस समय मेरा चित्त अत्यंत चंचल और अस्थिर था। यह देखकर आपकी चतुर कन्या 5 मन में तो आशंका निर्माण हो ही गई थी कि दाल में कुछ काला है। इतने में सिंहलनरेश के त्री हिंसक वहाँ आएँ, जहां हम दोनों बैठे हुए बातें कर रहे थे। हिंसक ने मुझे आँख से इशारा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust