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________________ 193 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र सामंत राजाओं की उनकी सेना के साथ नगर में सम्मान से बुलाया और उनका उचित ढंग से स्वागत किया। उन्हें यह समाचार दिया गया कि महाराज चंद्र को मुर्गे के रूप में से सूरजकुंड के पानी के प्रभाव से मनुष्यत्व की प्राप्ति हो गई हैं / यह समाचार पाकर सामंत राजा उनकी सेनाओं के साथ बहुत खुश हो गए और उनको ऐसा लगा कि हमारी अभी तक की महेनत सफल हो गई है। फिर राजा मकरध्वज ने सभी सामंत राजाओं और उनकी सेना के साथ सिद्धाचलजी की ओर प्रयाण किया। तेजी से प्रयाण करते-करते वे लोग कुछ ही समय में सिद्धाचलजी पर पहुँच कर राजा चंद्र और प्रेमला से मिले। इस मिलन का द्दश्य सचमुच बड़ा देखने योग्य था। यह द्दश्य दर्शकों के हृदय में दिव्य आनंद का अनुभव करा रहा था। मकरध्वज राजा तो अपने दामाद को मनुष्य रूप में देखते ही आनंद के आवेश में आया और उसने अपने दामाद को गले लगा लिया। हृदय से हृदय मिले। आनंद का सागर लहराने लगा। वहाँ उपस्थित सबकी आँखों में आनंद के आँसू छलक उठे थे / मकरध्वज राजा तो अपने दामाद चंद्र राजा का दिव्य रूप सौंदर्य देख कर इतना आश्चर्य चकित हो गया कि वह अपने दामाद का रूप निर्निमेष नेत्रों से देखता ही रहा / राजा अपनी पुत्री प्रेमला को उसके अनुपम भाग्य के लिए मन-ही-मन बघाई दे रहा था। विवाह के पूरे सोलह वर्ष बीत जाने के बाद प्रेमला को उसके पति की प्राप्ति हुई थी यह देख कर राजा के हृदय में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था / आभा नरेशचंद्र ने भी अपने ससुर और सास को प्रणाम कर उनका क्षेम कुशल पूछा। प्रेमला ने भी अपने माता-पिता को प्रणाम कर कहा कि, हे तात ! आपकी असीम कृपा | से मुझे अपने पतिदेव से फिर मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है। आपने जो आशीर्वाद दिया था, वह आज फलद्रूप हो गया है। ____ अपनी पुत्री के मस्तक पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद देते हुए राजाने कहा, प्रिय पुत्री ! तू अखंड सुहागन हो जा ! तेरे सतीत्व और तपश्चर्या के प्रभाव से ही तुझे तेरा इंद्र जैसा पति फिर से प्राप्त हो गया हैं। मैं भी विश्व में बेजोड़ होने वाले ऐसे दामाद को पाकर स्वयं को बड़ा भाग्यवान् समझ रहा हूँ। फिर चंद्र राजा और रानी प्रेनला अपने सभी स्वजनों को साथ लेकर फिर एक बार आदेश्वर दादा के दरबार में आ पहुँचे / सबने भगवान् आदेश्वर दादा का दर्शन वंदन किया P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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