SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 194 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र और उन्होंने अपने दुरित को दूर कर दिया। इससे उन्होंने अपना जन्म सफल बना लिया और आँखें पाने का फल भी प्राप्त कर लिया। ___दादा के दरबार में से बाहर निकलने पर प्रेमला ने अपने पति का परिचय अपने पिता से कराते हुए कहा, पूज्य पिताजी, ये आपके दामाद आभापुरी के राजा वीरसेन के पुत्ररत्न हैं। उनके मातापिता ने संसार त्याग कर संन्यासदीक्षा ले ली और सफल कर्मों का शय कर मुक्तिपद प्राप्त कर लिया है। यहाँ के सूरजकुड के पवित्र और प्रभावकारी पानी के कारण आपके दामाद मुर्गे में से फिर मनुष्य का रूप धारण कर चुके हैं। अब आप अपने दामाद का बराबर निरीक्षण कीजिए और उन्हें पहचान लीजिए / बारीकी से देखिए पिताजी, मेरे साथ सोलह वर्ष पहले विमलापुरी में विवाह कर के चले गए आपके दामाद ये ही हैं न ? राजा ने गर्दन हिला कर हाँ कहा और अपनी कन्या के महान् सौभाग्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इसपर प्रेमला ने अत्यंत गर्व से अपने पिता से कहा, / पिताजी, इस संसार में दीखने में सुंदर और गुणवान् पुरुष अनेक होते हैं। लेकिन आपके इन दामाद की तरह पुरुषरत्न तो प्रबल पुण्योद्रय से ही प्राप्त होते हैं। महान भाग्य से आज मेसे उपर लगाया गया विषकन्या का कलंक पूरी तरह धुल गया है। ओर चंद्र जैसे उज्जवल यश की प्राप्ती मुझे हो गई है। इस गिरिराज की सेवा करने से ही आज मेरी सभी आशाएँ पूरी हो गई है। अपनी कन्या की बात सुन कर अत्यंत हर्षित हुए मकरध्वजराजा ने प्रेम से परिपूर्ण द्दष्टि से अपने दामाद चंद्र राजा को फिर एक बार देखा / मकरध्वज की पत्नी और चंद्र की सास ने मोतियों की वर्षा करके अपने दामाद चंद्र राजा का सहर्ष स्वागत किया / ससुर राजा मकरध्वज ने अपने दामाद को अपने गले से लगा कर उसके प्रति अपने मन का गहरा प्रेमभाव फिर से प्रकट किया। चंद्र राजा के मातहत होनेवाले और मुर्गे के रूप में होते समय उनके रक्षक बने हुए सात / सामंत राजाओं ने चंद्र राजा को आदर से प्रणाम करके उनका प्रेम कुशल पूछा और चंद्र राजा E के फिर मनुष्यरूप प्राप्त करने पर अपना आनंद प्रकट किया। नटराज शिवकुमार और शिवमाला तो चंद्र राजा के गले लगे और उन्होंने चंद्र राजा के चरणों में गिर कर उन्हें बारबार प्रणाम किया। वे दोनों मिल कर चंद्र राजा के गुण गाने लगे। = अपनी की हुई सेवा सफल हुई है यह जान कर इस पिता पुत्री को प्रसन्ता का कोई पार न रहा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy