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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 191 हे नाथ, मैं तेरी शरण में आया हूँ। हे प्रभु, मुझे यथाशीघ्र इस अनंत दु:खमय संसारसागर से पार उतार दे। हे भगवन्, मुझे यह आशीर्वाद दे कि मैं इस संसार के मोहमायाजाल में फँस न जाऊँ ! मेरे हृदय में तेरे प्रति भक्तिभाव अखंड बना रहे। हे प्रभु, अनेक जन्मों में निरंतर भटकता हुआ मैं अब तेरी शरण में आ गया हूँ। तू - यथाशीघ्र मेरे सांसारिक दुःखों का नाश कर दे। हे नाथ, मुझे शीघ्रातिशीघ्र शिवसुख प्रदान कर.. दे। आज तेरे ही अचिंत्य प्रभाव के कारण मैंने सोलह-सोलह वर्षों का समय पक्षी के रुप में बिता / कर आज फिर से आपके चरणों की सेवा के लिए मनुष्य का रुप प्राप्त कर लिया है। राज्य का सुख तो में ने भूतकाल में लम्बे समय तक और कई बार प्राप्त किया हैं। लेकिन मुझे इससे कोई तृप्ति नहीं मिली। हे प्रभु, अब यदि मैं तेरे त्याग के मार्ग पर चलूँगा, तभी मेरी आत्मा अपने ज्ञानादि गुणों / से तृप्त हो सकेगी। हे प्रभु, मेरे सांसरिक संताप को शांत कर दे। हें ईश्वर, तू अनाथों का नाथ है, गूणरूपी मणियों के लिए तू रोहणाचल है, कर्मरूपी केसरी (सिंह) का नाश करनेवाला तू अष्टापद है। हे अनंतशक्ति के स्वामी, हे भगवान्, मेरी तेरे चरणों में अंत में एक ही प्रार्थना है कि अगले जन्म में मुझे तेरे ही चरणकमलों की सेवा करने का अवसर मिले। इस तरह चंद्र राजा परमात्मा युगाधिदेव की स्तुति करते हुए मन में विचार करने लगा कि कहाँ मैं और कहाँ यह गिरिराज ? आज मेरे प्रबल पुण्योदय से ही इस गिरराज की यात्रा करने का सौभाग्य मूझे प्राप्त हो गया। आज प्रभु के दर्शन से मेरा जन्म सफल हो गया। पूजा-दर्शन-वंदन आदि पूर्ण करके राजा चंद्र और रानी प्रेमला दोनों दादा के मंदिर से बाहर आए। बाहर आते ही उन्होंने अचानक एक चारण ऋषि को देखा। दोनों के मन अत्यंत हर्षित हो गए। दोनों ने अन्यत विनम्रता से ऋषि को वंदना की और उनके निकट हाथ जोड कर धर्मोपदेश सुनने को बैठ गए। चारण ऋषिने अपने ज्ञान के बल पर तुरन्त जान लिया कि यह निकटमोक्षगामी जीव है। इसलिए ऋषि ने राजा-रानी तथा अन्य उपस्थितों को विरत्ति उत्पन्न करनेवाली देशना (धर्मोपदेश) सुनाई। ऋषि का धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा चंद्र ने गिरिराज की परिक्रमा कर अपना भवभ्रमण मर्यादित कर दिया। उधर प्रेमलालच्छी की एक दासी ने मुर्गे को मनुष्यत्व प्राप्त होते ही तुरन्त दौड़ते हुए विमलापुरी में जा कर राजा मकरध्वज को अत्यंत हर्ष से यह समाचार दिया, महाराज, सूरजकुंड की महिमा है कि आज आप के दामाद राजा चंद्र को मुर्गे में से फिर मनुष्यत्व की प्राप्ति हो गई ! P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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