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________________ 190 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र पूजा कीजिए। आज इस भगवान की कृपा से-दया से ही हमारा सारा दुःख नष्ट हो गया है / इस भगवान की दया से आज हमें सकल सुख संपत्ति की प्राप्ति हो गई। इसी गिरिराज के अचिन्त्य प्रभाव से आज हमारी सभी आशाएँ सफल हुई हैं। इसलिए इस गिरिराज का भी मोतियों से सम्मान कीजिए। हे नाथ, भगवान की भक्ति के रस से समकित रूपी वृक्ष का सिंचन कीजिए / ऐसा करने से ही नवपल्लवित समकितरूपी वृक्ष पर सर्वविरति का फल आएगा। जिनपूजा का फल सर्वविरति ही हैं। चंद्र राजा ने अपनी प्रिय पत्नी प्रेमला की कही हुई बातें सहर्ष स्वीकार कर ली। दोनों ने मिल कर एक साथ सूरजकुंड के पवित्र जल से स्नान किया। दोनों ने पूजा के वस्त्र पहन लिए, मुखकोश बाँधा और उत्तमोत्तम द्रव्यों का उपयोग कर अत्यंत भक्तिभाव से और श्रद्धा से भगवान ऋषभदेव की अष्ट प्रकारी पूजा की। दोनों ने मिल कर स्नात्रमहोत्सव भी किया। दोनों ने भगवान की प्रतिमा के सामने चामरनृत्य किया। भगवान की स्तुति-वंदना-चैत्यवंदन आदि करके दोनों ने भावपूजा से अपने मानवजीवन को सफल कर लिया। ऋषभदेव भगवान की स्तुति करते हुए कृतज्ञ चंद्रराजा ने भगवान से उद्देश्य कर कहा, हे त्रिभुवनतारक ! हे दयासागर ! ! हे त्रिभुवनबंधु ! हे अपूर्व कल्पतरु ! ! हे त्रिभुवननायक !! ! तेरे चरणकमलों की सेवा में तो सभी सुरेन्द्र भी लीन रहते हैं / हे अनंत गुणनिधि ! हे परमात्मा !! तेरी आज्ञा तीनों भुवनों में चलती है। सारे संसार पर तेरा ही एकछत्र साम्राज्य है / तेरे नामरूपी वज्र के प्रहार से प्राणियों के बड़े-बड़े पापों के पहाड़ भी टूट पड़ते हैं। तुझे प्रणाम करने से दुःख-दुर्भाग्य-दरिद्रता-दुर्गति पलायन कर जाते हैं। तेरे प्रति श्रद्धा और पूजा का भाव रखने से भक्त को सुख-संपत्ति-समाप्ति (शांति) - सद्गति प्राप्त हो जाती हैं। तेरे चरणों की पूजा से पूजक पूज्य बन जाता है / तेरी आज्ञा का पालन करनेवाला परमेश्वर बन जाता है / हे प्रभु, तेरी आरती उतारनेवाला दुष्कर भवसागर तैर कर पार हो जाता हैं / तेरे सामने दीपक जलानेवाला अपनी आत्मा में ज्ञानदीपक प्रकट करता है। है प्रभु, तू ही सचमुच देवाधिदेव है। तेरे गुणों का कोई पार नहीं है, तेरी महिमा अपार है, तेरा प्रभाव अचिंत्य हैं। . हे प्रभु, तू ही भवसागर में डूबनेवाले प्राणियों के लिए श्रेष्ठ जहाज के समान हैं / तू ही सर्वश्रेष्ठ नियामक है। तू ही यह भीषण भवाटनि पार करानेवाला श्रेष्ठ सार्थवाह हैं। सभी प्रकार की संपत्ति का तू एकमात्र कारण है। हे भगवन् तू दुखीजनवत्सल है, अशरणों के लिए शरण __ है, निराधारों का आधार है, जिसका कोई नहीं, उसका बंधु है। .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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