________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र ___189 ! साथ बातें करने का साहस भी वह न कर सकी, चुपचाप पति को अपनी आँखों से पीती ही / रही ! देखती ही रही !! प्रेमला की प्रेमोन्मत्तता देख कर वहाँ विद्यामान लोगों को ऐसा लग रहा था मानो यह प्रेमला किसी भी क्षण अपने पति राजा चंद्र के हृदय में प्रवेश कर जाएगी। प्रेमला ने पिछले सोलह वर्षों से जो जप-तप-व्रत किया था, जो कड़ी साधना की थी, वह आज फलवती हो गई। आज उसकी सभी आशाएँ पूरी हुई, सभी मनोकामनाएँ फलद्रुप हुई। इधर सोलह वर्षों की लम्बी अवधि तक मुर्गे के रूप में रहने के बाद अचानक हुई इस मनुष्यत्व की प्राप्ति के कारण आभानरेश राजा चंद्र की प्रसन्नता का पार नहीं था। यह शुभ समाचार वायु की गति से क्षण भर में विमलापुरी तक पहुँच गया। इतना ही नहीं, बल्कि चारों दिशाओं में फैल गया यह शुभ समाचार ! इस महातीर्थ के अधिष्ठायक देवों ने आकाश में से चंद्र राजा पर पुष्पवृष्टि की और उसे दिव्य वस्त्रालंकार उपहार के रूप में दिए। इस घटना के कारण आसपास से दूरदूर तक इस तीर्थक्षेत्र की महिमा खूब फैल गई। इस चमत्कार से सूरजकुंड के पानी की महिमा भी बढ़ी और उसकी ख्याति भी बढ़ी अपने प्रिय पति के पास खड़ी प्रेमला ऐसी लग रही थी मानी इंद्र के पास इंद्राणी खड़ी ही। ऐसा लग रहा था मानो कामदेव के साथ उसकी पत्नी रति खड़ी हो। प्रेमला के सभी सगेसंबंधी उसके सौभाग्य की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगे। प्रेमला की सखियाँ तो कहने लगी कि हे सखी, ऐसा पति तो त्रिभुवन में तेरे ही भाग्य में हैं। बहन, तेरा भाग्य बड़ा अद्भूत हैं। आज तेरी तपश्चर्या फलवती हो गई है। आज तेरे लिए सोने का सूरज उदित हो गया है / आज तेरी सारी आशाएँ सफल हो गई हैं तुझे पतिविरह का जो दुःख भुगतना पड़ रहा था उसका हमें भी बड़ा दु:ख था, लेकिन आज तुझे तेरे पतिदेवता फिर से प्राप्त हो गए, इससे हमारे भी आनंद का कोई पार नहीं रहा है। अब प्रेमला ने इतनी देर के बाद जैसे होश में आकर पहली बार मुँह खोला / उसने लज्जा से अवनत मुख से और हाथ जोड़ कर विनम्रता से अपने पतिदेव आभानरेश से कहा, हे प्राणनाथ / आप सूरजकुंड के पवित्र पानी से स्नान कीजिए। फिर पूजा के साफुसुथरे कपड़े पहनिए और मुखकोश बाँध कर सबसे पहले ऋषभदेव भगवान की महामंगलकारी अष्टप्रकारी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust