________________ 188 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र हे नाथ, मुझे तो लगता है कि आपने मेरे प्रेम की परीक्षा करने के लिए ही ऐसा किया। तो में भी आपकी प्रेम की परीक्षा मे उत्तीर्ण होने के लिए आपके पीछे आती हूँ। इतना कह कर पति मुर्गे के पीछे प्रेमला भी सूरजकुंड के अथाह जल में कूद पडी। उसने ऐसा करते समय मन में यही निश्चय किया था कि जो गति उनकी, वही मेरी हो। प्रेम की परीक्षा संकट के समय में ही होती है। सुख और वैभव की स्थिति में तो सभी प्रेम व्यक्त करने के लिए आ पहुँचते हैं, लेकिन संकट के समय में कोई विरला ही प्रेमी के पीछे उसकी मदद के लिए दृढ़ता से खड़ा रहता है। ... मुर्गे के पीछे प्रेमला के भी सूरजकुंड में कूद पड़ने की दुर्घटना देख कर प्रेमला की सखियाँ अत्यंत भयभीत हो गई। उनके रोने-चिल्लाने से सूरजकुंड के किनारे पर कोलाहल मच गया। रोने चिल्लाने की आवाजें सुनकर अड़ोस-पड़ोस के लोग वहा दौडते हुए आए। सारे वातावरण में हाहाकार मच गया। लोग तरह-तरह से बातें करने लगे। इधर मुर्गे के पीछे सूरजकुंड में कूद पड़ी प्रेमला ने मुर्गे को बचाने के लिए जीतोड मेहनत शुरू कर दी। जब प्रेमला पुर्गे को पकडने लगी। तब वीरमती ने उसके पाँव में मंत्र डालकर बाँधा हुआ धागा प्रेमला के हाथ के धर्षण से टूट गया। इसी के हाथ मूर्गे की अशुभ कर्म की बेडियाँ भी टूट गई / वह मूर्गे से एकदम मनुष्य बन गया। चाहे सूरजकुंड के पवित्र जल का प्रभाव कहिए, या विमलाचल महातीर्थ के पावन स्पर्श का प्रभाव कहिए, लेकिन यहाँ चंद्रराजा / के दुःख का अंत आ गया। | अचानक मुर्गे का मनुष्य बनने का चमत्कार देख कर वहाँ उपस्थित सब लोग दंग रह गए / इसी समय लोगों ने एक ओर चमत्कार देखा। शासनदेवी अचानक वहाँ प्रकट हुई। उसने प्रेमला और उसके पति आभानरेश राजा चंद्र को सूरजकुंड में से सही सलामत बाहर निकाला / उन दोनों ने जब शासनदेवी को झुक कर प्रणाम किया, तो शासनदेवी ने दोनों को आशीर्वाद देकर उन पर पुष्पवृष्टि की। सूरजकुंड में से बाहर आते ही प्रेमला ने यह पहचान लिया था कि मुर्गे में से रूपांतरित हुआ मनुष्य अन्य कोई नहीं, बल्कि सोलह वर्ष पहले रात के समय जिससे उसका विवाह हुआ था, वेही आभानरेश राजा चंद्र हैं / सुधबुध भूल कर वह अपने प्राणनाथ को एकटक दृष्टि से देखती ही रही। पति से पुनर्मिलन का ऐसा आनंदसागर उसके हृदय में उमड़ पड़ा कि पति के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust