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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 187 मेरे जीवन की युवावस्था के इतने वर्ष पक्षी के रूप में बीत गए, लेकिन आज भी मुझे फिर से मनुष्य का रूप प्राप्त होने की आशा नहीं दिखाई देती है / आशा करते हुए-उसी पर विश्वास रख कर अब मैं कब तक जीऊँगी ? यह प्रेमलालच्छी मेरी पत्नी है। लेकिन उसीके / पास लाचार पंछी के रूप में रहने मुझे जहर जैसा लग रहा है। __. जब-जब मैं प्रेमला को देखता हूं, तब-तब मेरे हृदय में विरह का दाह उत्पन्न होता है। मैंने अपना सारा यौवन व्यर्थ ही खो दिया है। अपने जीवन में भोगे हुए दुखों की यादें मेरे हृदय के सौ-सौ टुकड़े कर डालती है। ऐसी अवस्था में लाचारी का जीवन जीने से मरना अच्छा है ! पक्षी बन कर जिंदा रहने की अपेक्षा मृत्यु का आलिंगन करना हजार गुना अच्छा है। क्या मैं इस महापवित्र पानी से भरे हुए सूरजकुंड में जलसमाधि ले लूँ ? इससे मेरे जीवन के सभी दु:खों का अंत आ जाएगा और कल्याण होगा। इस जगत् में कौन किसका हैं ? किसकी माता ? किसका पिता ? किसकी पत्नी ? किसका पति ? किसकी नगरी ? किसका राज ? यह सब तो बस मोहराजा का फैला हुआ माया जाल ही है ! अब ऐसी अवस्था में कबतक जिंदा रहूँ ? सि असार संसार में सब लोग स्वार्थ के सगे हैं। कोई अपना नहीं है, सब पराए हैं, पराए हैं। . इस प्रकार चिंतन करते-करते मुर्गे के मन में विरक्ति की भावना ने जोर पकड़ लिया। उसके मन में सूरजकँड में कुद कर, जलसमाधि लेकर मृत्यु का आलिंगन करने का विचार पक्का हो गया। उसने आव देखा न ताव, वह प्रेमला के हाथ में से छूटा और सीधा सूरजकँड में कूदा। अचानक हुई घटना के कारण प्रेमली तो एकदम घबरा गई। वह जोरजोर से चिल्लाने लगी। सिसक-सिसक कर रोते हुए वह कहने लगी, हे प्राणनाथ / आपने ऐसा क्यों किया / अब मैं विमलापुरी लौट कर शिवमाला और उसके पिता शिवकुमार को अपना मुँह कैसे दिखाऊ ? वे मुझे कितना दोष देंगे, कैसे भला-बुरा कहेंगे ? . हे नाथ, में ने आपको बिलकुल कष्ट नहीं दिया। मैं ने तो जब से आप मेंरे पास आए, तब से आपकी तन-मन-धन से पूरी लगन से सेवा की मैं ने तो आपको अपने हृदय का हार मान लिया था। फिर हे स्वामी, ऐसा अचानक क्या हो गया, जो आप एकदम सबका स्नेह त्याग कर पानी से भरे हुए कुंड में कूद गए ? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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