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________________ 182 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र . हे पक्षिराज, क्या इस दुनिया में ऐसा कोई परोपकारी पुरुष नहीं है जो आभापुरी में जाकर मेरे पतिराज कोसमझा कर उनके कठोर हृदय को कोमल बनाए ? सोलह-सोलह वर्षों की लम्बी अवधि बीत जाने के बाद भी उनके हृदय में मेरे प्रति प्रेम का भाव उत्पन्न नहीं हुआ / ऐसा लगता है कि मेरे पतिराज का हृदय वज्र जैसा कठोर है। मुझसे विवाह करके आभानरेश के चले जाने के बाद मेरे पिता ने मुझे बहुत परेशान किया। मेरे और उनके प्रबल पुण्य के प्रताप से ही मैं प्राणाघाती कष्टों से भी बच गई। अन्यथा, मैं कब की परलोक सिधार गई होती! लेकिन हे पक्षिराज, मेरे पिताने मेरे साथ किए हुए अन्याय के विरुद्ध मैं किसके पास शिकायत करूँ ? मुझे न्याय कैसे मिलेगा ? कौन देगा ? . हे पक्षिराज, इस जगत् में प्रेम करना आसान है, लेकिन प्रेम करके उसे निभाना बहुत कठिन है। सचमुच, जिनके हृदय में प्रेम ही नहीं होता, उनके साथ प्रेम करना याने दु:ख को निमंत्रण देने के समान है। तू मेरे स्वामी के घर का पक्षी है इसलिए तुझे देख-देखकर मेरे हृदय को शांति मिलती है। तुझे देखकर आज मुझे उतना ही आनंद प्राप्त हो रहा है.जितना प्रत्यक्ष | रुप में मेरे पति को देखकर और उनसे मिलकर मिल जाता! . हे पक्षिराज, ऐसा लगता है कि तू मेरे पूर्वजन्म का कोई मित्र है। ऐसा न होता, तो मेरे हृदय में तुझे देख कर ऐसा स्नेह का सागर क्यों उमड़ आता ? तेरे प्रति मेरे मन में गहरा स्नेहभाव उत्पन्न हुआ है। इसीलिए मैं तेरे सामने अपना सारा दुखड़ा रो रही हूँ। तुझे अपने मन की सारी गुप्त बातें बता रही हूँ। हे कुक्कुट, तुझे देख कर आज मेरे मन को परम शांति मिल रही है / मेरे मन में ऐसा आ रहा है, मानो मैं एक पक्षी को नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप में अपने पति को ही देख रही हूँ। लेकिन हे पक्षिराज! तू उनके समान निष्ठूर मत बन। डूबते हुए को नौका मिलने से जैसे उसका डूबने से बचाव होता है, उद्धार होता है, वैसे ही मुझे तू मेरे महाभाग्य से मिला है और मेरा उद्धार ही हो गया है। प्रेमला को प्रेम की पुष्टि करनेवाली ये सारी बातें सुन कर मुर्गे के हृदय पर गहरा असर हुआ। लेकिन इस समय वह पक्षी के रुप में था, इसलिए वह मनुष्य की भाषा में प्रत्युत्तर न दे सका। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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