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________________ चन्द्रराजर्षि चरित्र 183 प्रमला को सोलह वर्षों के बाद उसका पति तो मिला लेकिन वह पक्षी के रूप में था। जब मान्मत्त होकर मुर्गे के सामने अपना दुखड़ा रो रही थी, तभी शिवमाला वहाँ आ पहुँची। शिवमाला ने आते ही मुर्गे को बड़े प्रेम से अपनी गोद में बिठाया और वह उसके सारे पर सुगधित द्रव्य का लेप करने लगी। उसने मुर्गे को खाने के लिए सुखड़ी, मेवा, मिठाई परखा। फिर उसने मुर्गे के मनोरंजन के लिए एक गीत मधुर कंठ से गाकर उसे सुनाया। 'प्रकार मुर्ग को खुश कर के शिवमाला ने प्रेमला से कहा, देखिए प्रेमला जी, आपकी तुर्मास के इन चार महीनों के लिए ही इस मर्गे को अपने पास रखना है। चातुर्मास पूरा होने बाद तुरन्त हम अपने महाराज को अपने साथ लेकर ही यहाँ से आगे जानेवाले हैं। प्रेमला जी, इन चातुर्मास के चार महीनों में आप इस मुर्गे से प्रेम कीजिए, उसका लालनलन कीजिए / लेकिन, मैं हररोज यहाँ उनके दर्शन करने के लिए नियमित रूप से ॐगा। चातुर्मास के इन चार महीनों में तम्हारी मनोकामना परी हई. तो मैं हरदम के लिए इस का आपके पास रख कर यहाँ से चली जाऊँगी। फिर कभी उसे वापस नहीं माँगूंगी। क्यों बहन, मैं ठीक कह रही हूँ न ? इतना कह कर शिवमाला तो वहाँ से चली गई। लेकिन शिवमाला को रहस्यगर्भित तों का भावार्थ प्रेमला की समझ में नहीं आ पाया। बेचारी प्रेमला को अभी इस बात का पता था कि यह मुर्गा ही सोलह वर्ष पहले उससे बिछुड़ा हुआ उसका पति है, आभानरेश राजा द्र है। प्रेमला तो पहले की तरह मुर्गे को अपनी गोद में बिठा कर उसका लालन पालन करने / तल्लीन हो गई। उसका यही क्रम लगातार कितने ही दिनों तक बराबर चलता रहा। / वर्षा ऋतु के दिन थे। आकाश में काले-काले बादल उमड़ कर आए थे। बादलों की जना सुनाई दे रही थी। बीच बीच में बिजली का चमकना भी प्रारंभ हो गया था। थोड़ी ही देर मूसलाधार वर्षा प्रारंभ हो गई। चारों ओर पानी ही पानी भर गया / ग्रीष्म ऋतु के ताप में लता हुई संतप्त धरती की आग शांत हो गई। लेकिन पतिविरह के ताप में जलती हुई प्रेमल न हृदय शांत न हुआ, बल्कि उसकी जलन और बढ़ गई। शिवमाला जो रहस्यगर्भित वचन बोल कर उस दिन चली गई थी, उसपर बार बा बतन करते हुए प्रेमला को ख्याल आ गया कि यह मुर्गा ही मेरा पति आभानरेश चंद्र है P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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