________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 181 राजा ने जैसे ही मुर्गे का पिंजड़ा प्रेमला के हाथ में दिया, वैसे ही प्रेमला ने मुर्गे को पिंजड़े में से बाहर निकाला और उसे अपने हाथ पर बिठा कर वह उसके सामने अपना दुःख प्रकट करने लगी। हे कुक्कुट ! तु मेरे ससुराल का सर्वोत्तम पक्षी है। आज सोलह वर्षों के बाद मेरी अपने ससुराल के प्राणी से मुलाकात हो रही है। तेरे नगर के राजा मेरे पति हैं। लेकिन जैसे कोई भिखारी हाथ में आया हुआ रत्न खो देता है, वैसे ही मैंने भी अपने हाथ में आए हुए अपने पति को खो दिया है। पतिवियोग के दु:ख और संताप से मेरे शरीर में कमजोरी आई है और मैं सिर्फ हड्डियों का कंकाल रह गई हूँ। मेरे इस दुर्बल शरीर को तू भी देख सकता है। मैंने पति के छोड़ जाने के बाद पिछले सोलह वर्षों से सारा साज-शृंगार त्याग दिया है। मैं प्रतिदिन भूमि पर ही सोती हूँ ।पति से मिलने के लिए मैं निरंतर जप-तप-व्रत और प्रभु भक्ति करती हूँ। लेकिन इतनी तपश्चर्या करने के बाद भी अब तक मुझे अपने पतिराज के दर्शन नहीं मिले हैं। न जाने मैंने उनका ऐसा कौन-सा अपराध किया है कि अभी तक उन्होंने मेरी खबर नहीं ली है, मेरी याद नहीं की है ? मेरे पतिराज ने रात के समय मेरे साथ विवाह किया और तुरंत एक कोढ़ी पुरुष के हाथ ने मुझे सौंप कर वे तो चले गए, वे वापस नहीं आए ! लेकिन मैं नहीं मानती कि ऐसा बर्ताव मेरे साथ करने से उनकी प्रतिष्ठा में कोई वृद्धि हुई होगी। इसके विपरीत, ऐसा वर्ताव करके उन्होंने मेरा जीवन नष्ट कर डाला। भगवान जाने, उनको ऐसा करने को किसने सिखाया ! यदि उन्हें तुझे छोड़ कर तुरंत ऐसे दूर-दूर जाना ही था, तो फिर उन्होंने मेरे साथ विवाह क्यों किया ? हे पक्षिराज ! मैंने तो तेरे राजा जैसा बिलकुल स्नेहरहित और नीरस पुरुष कोई दूसरा नहीं देखा। विवाह के बाद सोलह वर्ष बीत गए, वे एक बार भी मुझसे मिलने के लिए तो नहीं भाए, लेकिन एक बार पत्र भेज कर भी उन्होंने मेरा क्षेमकुशल तक नहीं पूछा / न उन्होंने पत्र ने न हो किसी दूत के साथ मुझे अपना समाचार भेजने का ही कष्ट किया। कहाँ आभापुरी और हाँ विमलापुरी ? पूरब-पश्चिम का अंतर है। मैं इतनी दूरी पर होनेवाली आभापुरी जाऊँ तो से ? ___हे पक्षिराज ! ऐसा काम तो कोई शत्रु भी नहीं करता है / मैं इतनी दूरी पर जा नहीं कती हूँ और वे यहाँ आ नहीं सकते हैं। ऐसी स्थिति में मैं अपने दिन किस तरह व्यतीत करूँ पति के जीवित होते हुए भी मैं पिछले सोलह वर्षों से एक विधवा का जीवन जी रही हूँ। P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust