________________ 180 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र लेकिन महाराज, आपकी कन्या प्रेमला मेरी सच्ची और अच्छी सखी है। इसलिए उसके सुखसंतोष और आनंद के लिए हम लोग आपकी प्रार्थना अस्वीकार नहीं कर सकते हैं। . हे राजन, आप खुशी से हमारे मस्तक के मुकुट स्वरूप होनेवाले मुर्गा राजा काला जाइए। मैं चाहती हैं कि हमारे महाराज आभानरेश और प्रेमला दोनों का कल्याण हो / लोकन महाराज, मेरी एक ही प्रार्थना है कि आप हमारे प्राणप्रिय महाराज की रक्षा अपने प्राणी सभा अधिक सावधानी से कीजिए। यह भी निश्चय ही मान जाइए कि ये आभानरेश ही हैं। उन्हें एक सामान्यपक्षी मान कर उनकी सेवा में बिलकुल प्रमाद मत कीजिए। प्रेम हरदम अपने प्रेमी को सुखी देखना चाहता है। सच्चा प्रेम वही है जो अपने प्रेमी के सुख से सुखी और दुःख से दु:खी होता है। इसी लिए शिवमाला राजा मकरध्वज को बार बार समझा रही थी। शिवमाला ने राजा मकरध्वज को आगे बताया, महाराज, इस मुर्गे से आपकी पुत्री का सकल मनोरथ पूर्ण होंगे। आपकी पुत्री के मनोरथों की पूर्ति केलिए ही मैं यह कल्पवृक्ष आपके करकमलों में सौंप रही हूँ / इतना कह कर शिवमाला ने पिंजड़े के साथ मुर्गे को आदर से महाराज मकरध्वज के हाथ में सौंप दिया। इच्छित बात इस तरह पूर्ण होते देख कर राजा मकरध्वज के आनंद का पार न रहा। नटराज शिवकुमार और शिवमाला के प्रति अत्यंत कृतज्ञता का भाव बार बार व्यक्त करते हुए राजा सोने के पिंजड़े में मुर्गे को लेकर अपने राजमहल में आ पहुँचा और उसने तुरंत अपनी पुत्री प्रेमलालच्छी के महल में पहुँच कर पिंजड़े के साथ मुर्गे को प्रेमला के हाथ में रख दिया। राजा मकरध्वज ने प्रेमला से कहा, देख बेटी, इस मुर्गे की बहुत सावधानी से देखभाल = कर / किसी तरह से इसे परेशानी न हो, समझी। किसी निर्धन को रत्नचिंतामणि हाथ में आए तो जितना आनंद होगा, उससे भी अधिक आनंद प्रेमला को मुर्गा हाथ में पड़ते ही आया। इस अनोखे मुर्गे को पाकर प्रेमला नटराज शिवकुमार और उसकी पुत्री शिवमाला को बार बार धन्यवाद दे रही थी और मन-ही-मन बहुत खुश हो रही थी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust