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________________ 179 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र बात का पता ही नहीं था कि आप प्रेमला के प्राणाधार पतिदेव हैं। अभी आपकी बातों से ही मुझे यह रहस्य पहली बार मालूम हुआ है। मैं चाहती हूँ कि यहाँ रह कर आपका और प्रेमला का कल्याण हो / मैं आपके सुख में बिलकुल बाधा नहीं बनना चाहती हूँ। मैं आपको यहाँ प्रेमला को खुशी से सौंप कर चली जाऊँगी / हे आभानरेश, मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि मेरे साथ रहने से आपको अपनी प्रिया की प्राप्ति हो गई। मेरे लिए यह बात कम आनंद देनेवाली नहीं है / मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मेरी अब तक की सेवा और परिश्रम सफल हो गए। अपनी सेवा को सफल होते देखकर मैं अपना जीवन सार्थक मानती हूँ। मैं कृतार्थता का अनुभव करती हूँ। मुर्गा और शिवमाला इन दोनों के बीच जब यह वार्तालाप चल रहा था, तब अचानक राजा मकरध्वज अपनी पुत्री प्रेमलालच्छी के अनुरोध से वहाँ आ पहुँचा / शिवकुमार ने राजा को अपने डेरे में आते देखकर उसका स्वागत किया और उसे बैठने के लिए सुवर्ण का सिंहासन दिया / शिवकुमार की विनती स्वीकार कर राजा सिंहासन पर बैठा / शिवकुमार ने पूछा, महाराज, आप अचानक यहाँ कैसे आए ? यदि जरूरत थी तो मुझको बुला लिया होता ! आपने क्यों कष्ट किया, महाराज ? राजा मकरध्वज ने कहा, शिवकुमार, मैं तुम्हारे पास मुर्गा लेने आया हूँ। यदि तुम खुशी से मुर्गा दे दोगे तो मैं मानूँगा कि तुमने मेरी बात मान ली और मेरी पुत्री प्रेमला को जीवनदान दे दिया। नटराज, यदि तुम मुर्गा दे दोगे तो मैं आजीवन तुम्हारा उपकृत रहूँगा। अब मैं और क्या कहूँ ? . नटराज शिवकुमार ने राजा की बात सुन कर कहा, हे राजन्, इस मुर्गे को आप कोई सामान्य पक्षी मत समझिए / यह मुर्गा याने स्वयं आभानरेश ही हैं। इसीसे अभी तक उन्हें आपको सौंपने में मेरा मन हिचकिचा रहा था। लेकिन महाराज, जब आप स्वयं हमारे महाराज को ससम्मान ले जाने को आए हैं, तो मुझे उन्हें आपको सौंप कर ही आपका स्वागत करना चाहिए। इस समय मेरी स्थिति सरौते के बीच पड़ी हुई सुपारी जैसी हो गई है। शिवकुमार की बात बीच ही में रोक कर शिवमाला बोली, हे देव ! हमारे इन्हीं महाराज कारण हमने अभी तक अनेक राजाओं की नाराजगी मोल ली है। इन्हीं के कारण अनेक राजा हमारे शत्रु भी बन गए हैं। इनके लिए हमने बहुत कष्ट सहन किए हैं, दु:ख भोगा है। सलिए आपको इन्हें सौंपते हुए हमारा मन हिचकिचा रहा है और यह स्वाभाविक ही हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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