________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र ___ तोते की बात सुन कर रानी ने कहा, “हे तोते, तेरी बातों पर मुझे बिलकुल विश्वास नहीं होता है। तू व्यर्थ ही अपने बड़प्पन की शेखी बधार रहा है।" तोते ने इस पर-कहा, “हे स्त्री, ऐसा कह कर तू सिर्फ़ अपनी मूर्खता प्रकट कर रही है। पंछी समझ कर तू मुझे तुच्छ समझ रही है, लेकिन सुन, पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का वाहन गरुड़ नाम का पंछी है। सरस्वतीजी का वाहन हंस पंछी है। एक सेठ की स्त्री कामातुर बनकर जब गुमराह हुई तो उसे उचित मार्ग पर लानेवाला मुझ जैसा एक विचक्षण तोता ही है। नल और दमयंती का मिलन भी एक हंस पंछी की कृपा से ही हुआ था / क्या तू ये सारी बातें नहीं जानतीं ? मैं एक पंछी हुआ तो क्या हुआ ? इधर मैं एक बार पढ़ने पर पढ़ा हुआ अक्षर भी नहीं भूलता। और उधर-तुम मनुष्य तो अनेक शास्त्र पढ़ने पर भी प्रमादवश उन्हें भुल जाते हो। शास्त्रों का अध्ययन करने पर भी तुम लोग उनका सार ग्रहण नहीं करते हो / शास्त्रकारों ने जो पद हमें दिया है वही वह तुम मनुष्यों को भी दिया है। इसलिए हम मनुष्यों से किसी भी तरह तुच्छ नहीं है। मैंने तो सिर्फ न्याय के लिए ही मजबूर होकर अपनी जाति की प्रशंसा की है। हे रानी, तू मेरी बातों पर पूरा विश्वास कर, मैं बिलकुल झूठ नहीं बोल रहा हूँ।" तोते के चतुराई भरे वचन सुन कर रानी वीरमती फूली न समाई। अब उत्साहित होकर वह मधुर वाणी में तोते से बोली, “हे पक्षिराज, तू सज्जन और विद्वान दिखाई देता है। तेरी वाणी मधुर है और तेरा चरित्र भी सुंदर और प्रभावशाली लगता है। इसलिए अब मैं तुझे अपना दुःख अवश्य बताऊँगी। लेकिन इससे पहले तू मुझे यह बता कि तूने ऐसी सुंदर शिक्षा किससे प्राप्त की ?" तोते ने उत्तर दिया, “हे बहन, एक बार एक विद्याघर ने मुझे पकडा। उसने मुझे सोने के पिंजड़े में बंद किया और वह मेरी बहुत सावधानी से देखभाल करने लगा। एक बार वह मुझे पिंजडे के साथ एक साधु के पास ले गया। उसने साधु को वंदना की। साधु के दर्शन से मेरा सारा पाप नष्ट हो गया। शास्त्रों में कहा गया है - "साधुनां दर्शनं पुण्यं, तीर्थ भूता हि साधवः।' साधु ने मुझे उपदेश दिया। इस उपदेश का मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव हुआ। जब साधु ने मुझे पिंजड़े में बंद देखा तब उसने विद्याघर को बताया, "हे विद्याघर, तुझ जैसे धर्मनिष्ट P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust