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________________ 12 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र सखियाँ के इतना पूछने पर भी वीरमती ने कोई उत्तर नहीं दिया, वह चुपचाप बैठी रही। रानी चंद्रावती के पुत्र को-चंद्रकुमार को-देख कर और 'मेरी गोद भगवान ने क्यों खाली रखी ? मुझे कोई संतान क्यों नहीं दी' इस विचार से वीरमती मन-ही-मन दुःखी हो रही थी, “हे देव ! मैंने अपने पूर्वजन्म में ऐसा कौन सा पाप किया है कि तुमने मेरी गोद खाली रखी ? पुत्र से रहित जीवन मुझे असार लगता है। प्राणों के बिना शरीर, दीपक के बिना घर, सुगंध के बिना फूल, पानी के बिना सरोवर, दया के बिना धर्म, प्रियवचन के बिना दान, मूर्ति के बिना मंदिर, जल से रहित मेघ, चंद्रमा से रहित रात्रि जैसे असार होती हैं, वैसे ही संतान से रहित होनेवाली स्त्री का जीवन भी असार होता है। इस संसार में उसी का जीवन सफल है जिसके घर सुपुत्र होता है ?" इस प्रकार अपने मन में अनेक प्रकार के कुतर्क करती हुई रानी वीरमती एक छतनार आम्रवृक्ष के नीचे बैठी थी। अचानक एक तोता उडता हुआ आया और उसी आम्रवृक्ष की डाली पर बैठा। वृक्ष के नीचे बैठी हुई रानी को शोकातुर देख कर तोते के मन में उसके प्रति गहरी सहानुभूति का भाव जाग उठा / तोता मनुष्य की भाषा में बोला, “हे सुंदरी, ऐसे आनंद के अवसर पर तू शोक्मग्न क्यों दिखाई देती है ? तू रो क्यों रही हैं ? तुझे किस बात का दुःख है ? किस बात की चिंता तुझे सता रही है ?" तोते के ऐसे प्रश्न सुन कर आश्चर्यचकित हुई वीरमती ने तोते से कहा, “ऐ तोते, तू तो एक पंछी है / तेरा निवास जंगल में है और तू आकाश में ऊँची-ऊँची उड़ाने भरना ही जानता है / प्राय: जंगल में रहनेवाले पशु-पंछी विवेकशून्य होते है। इसलिए तू मुझे मेरे दुःख के बारे में पूछ करक्या करेगा ? मेरा दुःख जान कर आखिर तुझे क्या लाभ होगा। जो किसी के दु:ख का निवारण नहीं कर सकता उससे अपना दु:ख क्यों कहा जाए ? हर किसी के सामने अपना दुखड़ा रोने से क्या लाभ ? रानी वीरमती की ये अभिमानभरी बाते सुन कर तोते के मन में बडा क्रोध आया। तोता क्रोध से बोला, “हे स्त्री, तू अपने को बड़ी पंडिता मान कर इतना गर्व क्यों कर रही हे ? तेरा यह बहुत बडा भ्रम है कि एक पंछी आखिर क्या कर सकता है ? तू नहीं जानती कि जो काम करने में मनुष्य समर्थ नहीं होता, वह काम पंछी कर सकता है।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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