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________________ 11 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र जैन धर्मानुरक्त राजा वीरसेन ने अनेक जैन मंदिर बनवाए, अनेक जीर्ण हुए जैन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। राजा जैन श्रावकों को अपने सगे भाइयों के समान मानकर उत्तम वस्त्रों-अलंकारों से उनका सम्मान करता था। जैन मूर्तियों के साथ वह अत्यंत भक्तिभाव से पेश आता था। राजा-रानी प्रतिदिन परमात्मा जिनेश्वरदेव की मूर्तियों की पूजा-आराधना अत्यंत श्रद्धा से करते थे, नवकारमंत्र का जप करते थे और पर्वतिथियों को ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करते थे। सत्संगति से क्या नहीं प्राप्त हो सकता ? सदाचारिणी रानी चंद्रावती की संगति से राजा वीरसेन पूरी तरह धर्म के रंग में रंग गया। दिन बीते-महीने व्यतीत हुए-वर्ष बढते गए। अब बाल चंद्रकुमार भी आठ वर्ष का हो गया। राजा ने अब चंद्रकुमार को एक सुयोग्य ज्ञानी पंडित के पास विद्याध्ययन के लिए रखा / बृहस्पति को भी बुद्धि में मात देने की शक्ति रखनेवाला बुद्धिमान् बालक चंद्रकुमार ने कुछ ही समय में सभी कलाओं और विद्याओं में कुशलता प्राप्त कर ली ! वसंत ऋतु आई ! राजा वीरसेन अपनी दोनों रानियों-चंद्रावती और वीरमती-को साथ लेकर पुत्रपरिवार सहित क्रिड़ा करने के लिए उद्यान में चला गया। वहाँ वे अब स्वेच्छा से वनक्रीड़ा में तल्लीन हो गए। चंद्रकुमार भी अपने अन्य मित्रों के साथ मिलकर विविध क्रीड़ाएँ करने में रंग गया। इधर राजा, राजा का सारा परिवार और नगरजन जहाँ आनंद से वसंतोत्सव की विविध क्रीड़ाओं का सुख लूट रहे थे, वहाँ सिर्फ रानी वीरमती अपने ईर्ष्यालु स्वभाव के कारण वसंत की बहार में भी शोकमग्न थी। मन के दु:ख के कारण ऐसे आनंद के अवसर पर भी उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी। शोकाकुल और रोती हुई वीरमती को देख कर उसकी सखियों ने उससे पूछा, "हे स्वामिनी / इस आनंद के अवसर पर आप शोकातुर क्यों दिखाई देती है ? देखिए, आपके निकट ही आपका कामदेव जैसा पति सुख क्रीड़ाओं में मग्न है, बालक चंद्रकुमार भी आपके पास ही विविध क्रीडाओं के रंग में तल्लीन हो गया है। फिर आप अकेली ऐसी उदासशोकातुर क्यों है ? क्या किसी ने आप से कोई अनुचित बात कही है ? अथवा किसी ने आपको अपमानित किया है ? क्या आपकी आज्ञा का किसी ने उल्लंघन किया है ? बताइए, आप क्यों दु:खी हैं ? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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