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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 173 ____ नटराज शिवकुमार ने बताया, “हे राजन् ! यहाँ से 1,800 योजन की दूरी पर इंद्रपुरी की तरह लगनेवाली आभापुरी नाम की नगरी है। इस नगरी पर राजा चंद्र राज्य करता था। लेकिन राजा चंद्र की सौतेली माँ वीरमती ने किसी कारणवश राजा चंद्र को कहीं छिपा दिया था / इसलिए हमने प्रत्यक्ष रूप में राजा चंद्र को अपनी आँखों से नहीं देखा है। हमने आभापुरी में वीरमती को राज्य करते देखा / हमने रानी वीरमती के सामने अपनी नाट्यकला प्रस्तुत की। हमारी कला पर प्रसन्न होकर रानी वीरमती ने हमें यह मुर्गा इनाम के रूप में दे दिया। राजा चंद्र की पटरानी गुणावली ने यह मुर्गा पाला था। रानी का इस मुर्गे पर ऐसा गहरा स्नेहभाव था कि वह किसी भी तरह से यह मुर्गा हमें देने के लिए तैयार ही नहीं थी। एक बार रानी वीरमती अत्यंत क्रुद्ध हो गई थी और क्रोधावेश में अपनी तलवार से इस मुर्गे को काट डालने के लिए उद्यत होगई थी। लेकिन पटरानी गुणावली और नगर के महाजनों ने बीच में पड़कर उस समय मुर्गे को मरने से बचा लिया था। फिर मुर्गे को ऐसा लगा कि यहाँ गुणावली के पास रहने में मेरे प्राणों को खतरा है। इसलिए उसने मेरी पुत्री शिवमाला के पास पंछी की भाषा में विंनती की 'हे शिवमाला, तू वीरमती से इनाम में मुझे माँग ले / पैसे के लालच में मत पड़।' मेरी पुत्री शिवमाला पक्षी की भाषा जानती थी, इसलिए वह सारी स्थिति समझ गई और उसने मेरे पास आकर बात की। मैंने शिवमाला की बात को तुरन्त स्वीकार कर लिया। फिर अपनी नाट्यकला दिखाने के बाद हमने वीरमती से उसे (मुर्गे को) इनाम के रूप में माग लिया। तब से बराबर हम उसका लालन पालन अपने प्राणों को तरह कर रहे हैं। हमने इस मुर्गे को अपना स्वामी-राजा-मान लिया है और हमने उसका दासत्व स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया है। इस घटना के बाद आज पूरे सोलह वर्ष बीत चुके है। पिछले सोलह वर्षों से हमारे साथ होनेवाले इस मुर्गा राजा को लेकर हम अपनी नटमंडली के साथ देश-विदेश में घूम रहे हैं और घूमते-घूमते आपकी नगरी में आ पहुँचे है। नटराज शिवकुमार के मुँह से मुर्गे के बारे में यह सारी असलियत जान कर राजा मकरध्वज बहुत प्रसन्न हो गया। प्रेमला ने जब अपने पति का, उनकी नगरी का नाम सुना और पति के घर के पक्षी के आगमन की बात सुनी, तो उसके भी हर्ष का कोई पार न रहा। हमारे मन में जिसके प्रति प्रेमभाव : होता है, उससे संबंध रखनेवाली सारी बातें हमें अच्छी ही लगती है। नरम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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