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________________ 174 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र जिसके मन में भगवान जिनेश्वरदेव के प्रति सच्चा प्रेम है, उसे भगवान जिनेश्वरदव का नाम, मूर्ति, मंदिर, पादुका, उसके शास्त्र (आगम), उनका मार्ग, उनकी वाणी, उनके बताए हुए मार्ग के अनुसार चलनेवाले साधु-साध्वी, उनका संघ, उनके तीर्थस्थल सबकुछ पवित्र, पूजनीय लगते है और उसके लिए वही आराध्य और आदरणीय हो जाता है। प्रेमी से संबंध रखनेवाली हर चीज प्रिय ही लगती है ! फिर प्रेमला को अपने प्रिय पात के घर का मुर्गा प्रिय क्यों न लगे ? प्रेमला को यह मुर्गा बहुत भा गया। लेकिन बेचारी प्रेमला का क्या पता था कि यह मुर्गा ही स्वयं उसका प्रिय पति है ? यह नटमंडली जब विमलापुरी में आ पहुँची थी, तब वर्षा ऋतु बहुत निकट थी। "इसलिए नटराज शिवकुमार ने विचार किया कि यदि राजा आज्ञा दे तो वर्षा ऋतु यहीं बिता कर बाद में आगे की ओर प्रस्थान किया जाए। वर्षा ऋतु में यात्रा करने से अनेक जीवों की हिंसा हान की संभावना थी। यह नटमंडली अत्यंत सरल स्वभाव की और पापभीरू थी। राजा ने उनके यहा क। वास्तव्य में उनका यह रूप देख लिया था। इसलिए जब नटराजा राजा के पास वर्षा ऋतु म विमलापुरी में रहने की अनुमति माँगने गया, तो राजा ने नटराज की बात तुरन्त स्वीकार कर उसे कह दिया, "शिवकुमार, तुम अपनी मंडली के साथ चातुर्मास के महीनों में खुशी से यहा रहा / मेरे करने योग्य तुम्हारा कोई काम हो तो मुझे नि:संकोच रुप में बताते जाओ। तुम यहाँ चार माह तक रहोगे, तो तुम्हारे नित नए खेल देखकर मुझे और विमलापुरी वासियों को भी बहुत आनंद मिलेगा। दूसरी बात, मेरे और मेरी पुत्री प्रेमला के मन में तुम्हारे मुर्गे के प्रति गहरा स्नेहभाव उत्पन्न हुआ है। तुम यहाँ रहोगे, तो हमें तुम्हारे मुर्गे की संगति भी मिलेगी। तुम्हार इस मुर्गा-राजा की देखकर तो हमारे हृदय में प्रेम को लहरें उठने लगती हैं / नटराज, तुम अवश्य यहां रहो। राजा की अनुमति इतनी आसानी से मिलने से नटराज मन-ही-मन बहुत खुश हुआ। अब उसने अपनी नटमंडली के साथ चातुर्मास का चार माह का समय इसी विमलापुरी में व्यतात करने का निश्चय कर लिया। अब नटराज प्रतिदिन अपनी नटमंडली के साथ राजदरबार म आकर विविध प्रकार के संगीत-नृत्य से राजा के चित्त का रंजन करने लगा। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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