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________________ 172 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र शा उधर मुर्गा भी प्रेमला को एकटक दृष्टि से बार बार देखता था / अचानक एक क्षण प्रेमला और चंद्रराजा (मुर्गे) की आँखें एक दूसरे से मिलीं। दोनों की आँखों से प्रेम का अमृत टपकता जा रहा था। उधर नाटक का खेल समाप्त होने के बाद नटराज शिवकुमार ने राजा को अनेक गात सुना कर खुश कर दिया। राजा की भी नज़र मुर्गे पर पड़ी। राजा के मन में मुर्गे के प्रति हादिक प्रेमभाव उत्पन्न हो गया। इसलिए राजा ने शिवकुमार से सोने का पिंजड़ा अपने पास मगा लिया और पिंजड़े से मुर्गे को बाहर निकाल कर अपनी गोद में बिठाया और फिर राजा मुगेक प्रति लाड़प्यार प्रकट करने लगा। अपने पिता राजा के निकट ही बैठी हुई प्रेमला के हृदय में भी मुर्गे के प्रति प्रेम का सागर हिलोरें मारने लगा। इसलिए उसने मुर्गे को अपने पिता से माँग लिया। उसने मुर्गे को अपना गोद में बिठा लिया और वह मुर्गे के शरीर पर अपना कोमल हाथ फेरने लगी। प्रेमला का करस्पर्श शरीर को होते ही वियोगव्यथा से अत्यंत पीड़ित मुर्गे के मन को बहुत शांति मिला। लेकिन उसके मनको इस बात का बड़ा दु:ख भी हुआ कि मैं अपने अंत:करण में होनेवाला विरह दुःख प्रेमला को बताने में असमर्थ हूँ। 1 इस संसार में जीव को जब सुख की सुखड़ी देखने को मिलती भी है तो उसमें दुःख का कंकड़ियाँ भी मिली हुई ही होती हैं। दु:ख के मिलावट के बिना होनेवाला सुख इस संसार में कहा भी नहीं है। सुखरूपी चंदन का वृक्ष सैकडों दुःखरूपी जहरीले सर्पो से घिरा हुआ होता है। मुर्गा प्रेमला के हृदय में प्रवेश करने के लिए अत्यंत उत्सुक था / इसलिए वह प्रेमला :के हृदय पर अपनी चोंच से जैसे-जैसे प्रहार करता गया, वैसे-वैसे प्रेमला अपने हाथ से उसका | पीठ थप-थपाती रही / पिंजड़े से बाहर निकाला गया होने पर भी मुर्गा प्रेमला के हृदयरूपा पिंजड़े में बंद हो ही गया था। प्रेमला ने भी उसे प्रेम की वर्षा से भिगो दिया। प्रेमला के पास हात हुए भी मुर्गे में मनुष्य की भाषा में बोलने की शक्ति नहीं थी, इसलिए वह प्रेमला के साथ अनक प्रकार की प्रेमचेष्टाएँ करते हुए उसका चित्त चुरा रहा था। / पर्याप्त समय बीत जाने के बाद राजा मकरध्वज ने मुर्गे को प्रेमला से लेकर पिंजड़े म = चंद कर दिया और वह पिंजड़ा बड़े स्नेह से नटराज को सौंप दिया। फिर राजा ने नटराज स ___ पूछा, 'नटराज, यह मुर्गा तुम्हें कहाँ मिला ?" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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