________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 171 और राजदरबार के सदस्यों ने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। अब शिवमाला बाँस पर से नीचे उतर आई। राजा के सामने आकर वह इनाम की याचना करते हुए खड़ी रही। राजा ने शिवमाला का सम्मान करके उसे बड़ा इनाम दिया। राजदरबार में उपस्थित अन्य दर्शकों ने भी शिवमाला पर विविध इनामों की वर्षा कर दी और सबने अपनी उदारता और कलारसिकता का परिचय दिया। संयोग से इसी समय सोने के पिंजड़े में होनेवाले मुर्गे की दृष्टि राजा के पास बैठी हुई प्रमला पर पड़ी। देखते ही उसने पहचान लिया। पूरे सोलह वर्ष बीत जाने के बात अपनी प्रिय प्रमला को देखकर मुर्गा फुला न समाया। अब मुर्गा अपने मनसे कहने लगा, “अब मैं क्या करूँ ? इस समय तो मैं एक पक्षी के रूप में हूँ। यदि इस समय मैं पक्षी न होता, तो तुरन्त प्रेमला से जा मिलता / लेकिन यह भी सच है कि मेरी सौतेली माँ वीरमती ने मुझे मुर्गे का रूप न दिया हाता, तो मैं यहाँ कैसे आता और फिर मेरी प्रिय प्रेमलालच्छी से मेरा मिलन कैसे हो पाता ? ईश्वर इस नटमंडली का भला करे, जो सर्वत्र मेरा यशोगान गाती-गाती मुझे यहाँतक ले / आई / मुझे लगता है कि आज सुबह मैंने अवश्य ही किसी पुण्यवान् आत्मा का मुँह देखा होगा / इसीसे आज मुझे अकस्मात् अपनी प्रिया के दर्शन का सुनह अवसर मिला। ऐसा लगता है कि आज मेरे अशुभ कर्म का क्षय होने से विरहदुःख का अंत प्रारंभ हो गया है। आज का दिन मेरे लए सचमुच सर्वोत्तम है। यदि आज से प्रेमलालच्छी मुझे अपने पास रख ले, तो लगता है कि जल्द ही मुझे फिर से मनुष्यत्व की प्राप्ति हो जाए। आज ऐसा निश्चित लग रहा है कि मेरे मनोरथ पूरे हो जाएंगे। लेकिन मेरा मनोरथ तभी सफल होगा जब शिवमाला मुझे खुशी से प्रेमला को अर्पण कर देगी।" जब प्रेमला पर नज़र जाने के बाद मुर्गा बने हुए चंद्र राजा के मन में ये विचार आ रहे है, तभी संयोग से प्रेमला की भी नज़र मुर्गे पर पड़ी। नटों को मुर्गे के सामने बार बार प्रणाम रते हुए देख कर प्रेमला के मन में बड़ा आश्चर्य हुआ। इसलिए प्रेमलालच्छी अब एकटक ष्टि से मुर्गे को बारीकी से देखने लगी और मुर्गे के मुँह की ओर उसकी दृष्टि बार बार जाने गी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust