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________________ . श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 165 - अचानक यह घटना घटित होते देखकर लीलावती घबरा गई। उसने अपनी गोद में बेसुध अवस्था में गिर पड़े मुर्गे को शीतोपचार से होश में लाने का प्रयत्न प्रारंभ किया। कुछ देर के प्रयत्नों से मुर्गे को होश आया। उसने मुर्गे से कहा, "हे पक्षिराज ! मैंने तो सरल हृदय से अपने हृदय के दुःख की बात तुमसे कही थी। लेकिन ऐसा लगता है कि मेरी बातें सुनकर तुम्हारे मन को गहरा दु:ख हुआ हो, तो मुझे क्षमा कर दो। लेकिन हे पक्षिराज, मैं यह जानना चाहती हूँ कि तुम्हें मेरी बातें सुन कर ऐसा क्या दुःख हुआ कि तुम एकदम रोने लगे और होश भी खो बैठे-बेसुध हो कर गिर पड़े ? कृपा करके मुझे तुम्हारे दुःख का, रोने का और बेसुध हो जाने का कारण बताओ। हे पक्षिराज मैं तो यह समझती थी कि तुम यहाँ आकर मुझे मेरे पतिवियोग के दुःख में कुछ शांतिप्रदान करोगे, लेकिन यह तो उलटा ही हो गया। मुझे ही तुम्हें शांति प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील होना पड़ रहा है ! मुझे ऐसा लगता है कि तुम मुझसे भी अधिक दु:खी हो। इसलिए कृपा करके मुझे यह बताओ कि तुम्हारे दु:ख का कारण क्या है ? इस समय मैं तो तुम्हारा दुःख देखकर अपना दु:ख भूल गई हूँ। तुम्हारे दु:ख का कारण जानने के लिए मेरा मन बहुत उत्कंठित है। इसलिए तुम मुझे अपने दु:ख का कारण अवश्य बताने की कृपा करो।" लीलावती की अपने प्रति गहरी सहानुभूति और प्रेम का भाव देखकर मुर्गे ने अपने पाँव के नाखून से भूमि पर लिखकर बताया “हे युवती, मैं आभापुरी का राजा चंद्र हूँ। मेरी सौतेली माँ वीरमती ने मुझे बिना किसी कारण के ही अपनी मंत्रशक्ति की सहायता से मुर्गा बना दिया है / अपनी प्रिय रानी गुणावली के वियोग के कारण मैं दु:खसागर में डूबता-उतराता हूँ और रातदिन प्रिय के विरह की आग में जलता रहता हूँ। मेरे इस प्रकार मुर्गा बने हुए कई वर्षों का समय व्यतीत हो चुका है। मेरे दुःख का यही मुख्य कारण है। हे युवती, मेरे जीवन में अन्य अनेक प्रकार के दु:ख हैं। मुझे तो अपने इन दुःखों का कोई अंत ही नहीं दीखता है। दूसरी बात यह है कि मुझे इस नटमंडली के साथ सर्वत्र भटकना पड़ता कहाँ मेरी वह इंद्रपुरी के समान आभानगरी ? कहाँ वह मेरा स्वर्ग के समान राज्य ? कहाँ वह मेरी प्राणप्रिय रानी गुणावली ? कहां वह मेरा एक महान् सम्राट जैसा ऐश्वर्य और कहाँ वह मेरा कामदेव जैसा सौंदर्य ? इधर आज एक पंछी बना हुआ मैं कितने सारे कलेश और दुःख P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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