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________________ 166 श्री चन्द्रराजर्षि चरि= वर्षो से भोग रहा हूँ ! यह सब देख कर मुझे ऐसा लगता है कि मेरे दु:ख का कहीं कोई अत नहीं है ? हेलीलावती, तेरा पति तो विदेश में चला गया है। उसके साथ तेरा पुनर्मिलन अवर होगा। लेकिन मुझे फिर से अपना मनुष्य का रूप कब मिलेगा और अपनी रानी गुणावला मेरा पुनर्मिलन कब होगा, यह तो सिर्फ भगवान ही जानता है। मुझे ऐसा लगता है कि तुम दु:ख के समान गहरा दु:ख तो नहीं है। तेरे और मेरे दु:ख के बीच आकाश-पाताल का अत मेरी रानी गुणावली मुझसे कई वर्षों से बिछुड़ी हुई है और पति-वियोग का दुःख सह" जा रही है। मेरी रानी गुणावली महासती है। वह मुझे नटमंडली को सौंपने को बिलकुल तयार नहीं थी। लेकिन वहाँ मुर्गे के रूप में गुणावली के पास रहने में वीरमती को ओर से मर प्राण को भय था। इसलिए मैंने ही पंछियों की भाषा के जानकार शिवकुमार और शिवमाला से कहा कि तुम लोग मुझे वीरमती के पास अपनी नाटयकला की कुशलता के लिए इनाम के रूप माग लो। गुणावली तो मुझे नटराज को सौपने के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी, लेकिन अपना सास से मेरे प्राणों को भय है यह जान कर उस सती ने मुझे रोते-रोते ही पिंजड़े के साथ नटराज के हाथ में सौंप दिया। हे लीलावती, अब तुम अपने मन में सोचो कि जब तुम्हें अपने पति से एक दिन का वियोग होने से इतना दु:ख होता है, तब मेरी रानी गुणावली को वर्षों से मेरा वियोग सहना पड़ रहा है, उसे कितना दुःख होता होगा ? वास्तव में हमारे दु:ख का कोई अंत नहीं दिखाई दता है। हम दोनों के दुःखरूपी पर्वत के सामने तुम्हारा दुःख तो एक कंकड़ के समान छोटा है। मुर्गे ने भूमि पर लिखी हुई यह अक्षरमाला पढ़ कर और समझ कर लीलावती का वयोग दु:ख थोड़ा-सा शांत हो गया। उसे ऐसा लगा कि इस चंद्रराजा (मुर्गे) के दु:ख के सामन जरा दु:खतो सचमुच कुछ भी नहीं है। इसलिए अब मुर्गे को सांत्वना देते हुए लीलावती ने कहा, -हे राजन्! हे धर्मबंधु ! आप अपने मन में बिलकुल दु:ख मत कीजिए। क्रूर कर्मसत्ता के सामन कसी का भी बल, बुद्धि और ऐश्वर्य काम नहीं करता है। जब आपके अशुभ कर्मो का यह उदय P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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