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________________ 164 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र नटराज शिवकुमार ने मंत्री सुबुद्धि का अत्यंत आग्रह देखा, उसके उद्देश्य के बारे में विश्वास कर लिया और उसके पुत्र को अपने पास रख लिया और फिर उसने पिंजड़े केसाथ मुगा मंत्री को सौंप दिया। मंत्री ने मुर्गे को अत्यंत आदर से लाकर अपनी पुत्री लीलावती को सौपा। मुर्गे की आँखों का अत्यंत आनंददायक सौंदर्य देखते ही लीलावती का क्रोध अपने आप नष्ट ही गया और उसके मन में मुर्गे के प्रति प्रेम का भाव उत्पन्न हो गया। पुण्यवान् प्राणी का देख कर किसको प्रसन्नता नहीं होती है ? लीलावती ने मुर्गे को अपनी गोद में रखा और मुर्गे से उद्देश्य कर कहा, “हे पक्षिराज, तुमने मेरे साथ ऐसा शत्रुतापूर्ण व्यवहार क्यों किया ? तुमने प्रभातकाल में कुकडकूँ की आवाज मुँह से निकाली, इससे मेरे पति विदेश में जाने को चल पड़े। तुमने मुझे मेरे पति से अलग कर दिया। तुम प्रति दिन सोने के पिंजड़े में रहते हो और मन चाहा अन्नजल प्राप्त करते हो। तुम्ह - दूसरे के दुःख की क्या कल्पना हो सकती है ? हे पक्षिराज ! सती स्त्री के लिए उसके पति का - वियोग असह्य होता हैं। एक पक्षी भी अपनी प्रिय के विरह से बैचेन, आकुल-व्याकुल हो जाता है। फिर मैं तो मनुष्य जाति की स्त्री हूँ। एक विवाहिता युवती अपने पति के बिना कैसे रह सकती है, कैसे जीवन व्यतीत कर सकती है ? हे पक्षिराज, मुझे ऐसा लगता है कि तुमने अपन पूर्वजन्म में किसी दंपती का कपट के प्रयोग से वियोग कराया होगा ; इसी पाप के उदय से तुम्हें इस जन्म में पक्षी की योनि प्राप्त हुई है। ___ पशु-पंछी प्राय: विवेकशून्य होते हैं। इससे मुझे तुममें विवेक का अभाव जान पड़ता | है। यदि तुम में थोड़ा-सा भी विवेक का अंश बाकी होता, तो तुम प्रभात में कुकडकूँ न बोलते. | चुप रह जाते। तुमने कुकडकूँ की आवाज सुबह के समय मुँह से निकाली, इसीलिए मुझे अपने | पति से वियोग सहन करना पड़ा। हे पक्षिराज, क्या तुम्हारे मन में मेरे प्रति थोड़ा भी दया का | भाव निर्माण नहीं हुआ ? तुम्हें देख कर मेरे मन में तो बहुत दयाभाव उत्पन्न होता हैं।" : लीलावती की दुःखपूर्ण और मर्मवेधी बातें सुनकर मुर्गे को अपनी पूर्वावस्था का स्मरण हो आया। उसी समय उसकी आँखों से आँसुओं की धारा अखंडित रूप में बहने लगी और वह - लीलावती की गोद में ही मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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