SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 149 सच्चा प्रेम अपने प्रेमी को कभी भूल नहीं सकता। हे नाथ ! आपके जाने से मेरे मन की हा व्यथा हो रही है, मेरा मन पीड़ित है। लेकिन हे मेरे प्राणो, परमकृपालु परमात्मा से मेरी यही कमात्र विनम्र प्रार्थना है कि "हे ईश्वर, मेरे नाथ को निरंतर सुखी रखो, उनको चिरंजीवी नाआ और ऐसा कुछ करते रहो जिससे उनका नित्य सम्मान होता रहे। इस बात का नित्य यान रखो कि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न सहना पड़े।" गुणावली का मन कहता गया, “हे मेरे स्वामी, मेरे प्रिय, मेरी आप से एक ही विनम्र प्राथना ह कि आप इस दासी को कभी भल मत जाइए। इससे अधिक मैं आपसे क्या कहूँ ?" पति के विरह की वेदना के कारणरानी गुणावली को सारा राजमहल श्मशान की तरह शून्यवत् लगता था, डरावना लगता था। शृंगार के सारे साधन उसे जलते हुए अंगारे की तरह जलानेवाले लगते थे। यह संसार भी बाहर से भले ही बडा भयानक हैं, डरावना है। ऐसे संसार से जो डरता है वह संयम के आश्रय में चला जाता हैं / जो संयम की शरण में जाता है वह शिवसुंदरी से आलिंगन कर लेता है / जो शिवसुंदरी से आलिंगन करता है उसे अनंत, अव्याबाध सुख सदा के लिए प्राप्त हो जाता हैं। संसार से चिपक कर बैठे रहने से मोक्ष और मोक्ष का अक्षय, अचल और अनंत सुख कभी नहीं मिल सकता। क्या आपको शुद्ध देव, गुरु और धर्म के विरह में कभी संसार श्मशान की तरह भयंकर लगता है ? या चीनी की तरह मीठा ही प्रतीत होता है ? क्या आपको संसार त्यागने योग्य लगता है या पकड़ कर रखने योग्य लगता है ?' आप एकान्त में अपनी अंतरात्मा से यह प्रश्न अवश्य पूछ कर देखिए। जिसे संसार छोड़ने योग्य लगता है वही सच्चा जैन श्रावक है, वही समकिती नावह, बाकी सभी जीव मिथ्यात्वी हैं / छोडने योग्य चीज को न छोडना और पकड कर रखने योग्य वस्तु को न पकड़ना ही महाअज्ञान है / यही सभी दु:खों की जड़ है। निरंतर पति के प्राणों की रक्षा हो और उन्हें किसी भी तरह की तकलीफ का सामना न करना पड़े इसलिए गुणावली ने गुप्त रीति से अपने अधीन और आज्ञाकारी सात सामंत राजाओं को समझा कर उन्हें अपनी-अपनी सेना लेकर नटराज के साथ जाने के लिए कह दिया। . इधर अब नटराज शिवकुमार एक बड़े सम्राट के प्रभाव के कारण गाँव-गाँव में और नगर-नगर में धूमता हुआ अपनी नाटयकला प्रकर कर रहा था। अब राजा चंद्र मुर्गे के रूप में P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy