________________ 150 श्री चन्द्रराजर्षि चनि साथ होने के कारण उसके पुण्यप्रभाव से नटराज शिवकुमार को अब रुपए-पैसे भरपूर मात्रा। मिलते थे, उसे किसी चीज की कमी नहीं थी। गुणावली ने पति के विरह के दुःख में डूबने से अच्छा खाना, पीना, पहनना-आठ साजशृंगार सब त्याग दिया, इससे उसका शरीर म्लान और कांतिहीन हो गया / लाक् स्वभावत: धर्मप्रवृत्ति की होने से वह इस सारे विरहदु:ख का कारण अपने अशुभ कर्म का ता। उदय मानती थी। इस अशुभ कर्मोदय के क्षय (विनाश) के लिए वह निरंतर नए-नए व्रत करत थी और परमात्मा के ध्यान मेंतल्लीन रहती थी। अशुभ कर्मो के विनाश के लिए तप आ परमात्मा जिनेश्वरदेव का ध्यान यह अचूक उपाय है। ऐसा करने से अशुभ कर्म के उदय अवसर पर भी चित्त की समाधिशांति बनी रहती है। गुणावली ने पीछे से भेजे हुए सात सामंत राजा नटराज शिवकुमार की मंडली के साट ही लिए और उन्होंने मुर्गे के रूप में होनेवाले महाराज चंद्र से कहा, “महाराज, हमें आपकारान गुणावली ने आपकी रक्षा के लिए आपके पास भेजा है। इसलिए हम आपके पास आए ह आज से हम आपके साथ ही रहेंगे। आपको आपकी सौतेली मां ने मुर्गा बनाया तो क्या हुआ महाराज, अब भी आप ही हमारे स्वामी हैं। हम आपके आज्ञाकारी सेवक हैं। इसी को कहत तीव्र पाप के उदय में भी तीव्र पुण्य का उदय ! अगर ऐसा न होता,तो फिर अपना-अपना राज्य छोड़ कर अपनी सेना साथ लेकर विपत्ति के समय चंद्र राजा की सहायता करने के लिए एक नहीं, दो नहीं, बल्कि सात-सात सामंत राजा क्यों चले आते ? गुणावली की हिंमत भी सचमुच सराहनीय थी। अपनी भयंकर राक्षसी जैसी क्रूर सास वीरमती के भय की परवाह किए बिना उसने गुप्त रीति से सात सामंत राजाओं को अपने पार मुर्गे की रक्षा करने के लिए सेनासहित भेज दिया। उसका उठाया गया यह कदम सचमुच हिम भरा है ।एसा करके गुणावली ने अपने पति राजा चंद्र के प्रति होनेवाले अपने प्रेम का बहुत बहुत अच्छी तरह से परिचय दे दिया। ___ आए हुए सात सामंत राजाओं ने मुर्गे के सूप में पिंजड़े में पड़े हुए राजा चंद्र से कहा “महाराज, आप हमें पहले की तरह अपने सेवक मानकर हमें चाहे जो आज्ञा दीजिए / भल हमारे प्राण क्यों न चले जाए,लेकिन हम आपकी आज्ञा का पूरी तरह पालन करेंगे / सच्च सेवक स्वामी की सेवा में अपनी ओर से कोई कसर नहीं रखता है। संकट के समय में तो संव को अपने स्वामी को विशेष रूप से सेवा करनी चाहिए। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust