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________________ 148 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र हमें मनुष्य का जन्म इसलिए प्राप्त हुआ है कि हम परमात्मा और उसके धर्म के साथ प्रेम करें। जरा सोचिए तो सही कि आपके मन में परमात्मा और उसके धर्म के प्रति कितना प्रेमभाव है। . पर वस्तु से प्रेम हो, तो उसमें पीड़ा होती है, दु:ख होता है, शोक, संताप, चिंता और भय होता है, उपाधि होती है। इसके विपरीत परमात्मा के प्रति प्रेम का भाव उपाधि रहित होता है, भव से रहित होता है। गुणावली महासती थी, इसलिए उसका अपने पति के प्रति नि:स्वार्थ प्रेमभाव स्वाभाविक ही था। सती के लिए उसका पति उसका सर्वस्व होता हैं, पति के बिना उसे सबकुछ शून्यवत् लगता है। पति के वियोग में उसको भोजन करना भी नहीं भाता है। वह सिर्फ पेट का किराया चुकाने के लिए ही थोड़ा-सा-रूखा-सूखा भोजन कर लेती है। पति के बिना उसे उत्तम वस्त्र, आभूषण और शंगार के सारे साधन बिल्कुल बोझ की तरह लगते हैं, अप्रिय प्रतीत होते है। पति के बिना न वह पलंग पर सोती है, न मखमली मृदुशय्या पर ही शयन करती है। पति के बिना न वह शरीर का शंगार करती है, न कपाल पर कंकम-तिलक लगाती है। वह प्राय: अपन दिन और अपनी रातें पति की याद करने में ही व्यतीत करती है। पति के क्षेमकुशल के लिए वह अपने शक्ति के अनुसार जप, तप और व्रत की साधना करती रहती है। जप-तप-व्रत की त्रिपृटी विपत्ति की साथी है। / गुणावली ने अपने पति से वियोग के कारण मन में हो रही असहय वेदना में अपने प्राणी 1 से उद्देश्य कर कहा, 'हे प्राण, मेरे प्राणाधार के न रहते हुए भी तुम अभी तक मेरे शरीर में क्यों वसे हुए हो ? तुम्हें तो मेरे शरीर का त्याग कर तुरन्त चला जाना चाहिए / यही वास्तव में | तुम्हारा धर्म है। जब मेरे प्राणाधार मुझे छोड़ कर चले गए हैं, तब तुम क्यों यहाँ मेरे शरीर में अड्डा जमाए हुए, मेरे शरीर से चिपक कर बैठे हो ? क्या तुम्हें शरीर में रहते हुए जरा भी शर्म नहीं आती हैं ? हे मेरे प्राणो बताओ, मेरे हृदय के स्वामी, मेरे प्राणाधार, मेरे प्रिय पति इस समय कहाँ होंगे? क्या करते होंगे ? वे सुख में होंगे या दुःख में होंगे ? वे मुझे स्मरण करते होंगे या भूल गए होंगे ? भले ही शायद वे मुझे भूल क्यों न जाए, लेकिन मैं उनको कभी नहीं भूल सकती, कभी - नहीं! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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