________________ चन्द्रराजर्षि चरित्र 147 ___ अपनी सास के मुँह से निकले हुए ऐसे निष्ठुर और निर्लज्ज वचन सुन कर गुणावली बहुत दुःख हुआ। लेकिन अवसर को जाननेवाली गुणावली ने सास की बातों के लिए मौन नुमति दे दी और फिर कहा, “माँजी, आपकी बातें बिलकुल सच हैं।" गुणावली की बात सुन कर वीरमती बहुत खुश हुई और इधर-उधर की बातें करती हुई महल की ओर लौट गई। इधर महल में से सब लोगों के चले जाने के बाद गुणावली के त्ति में दु:ख का महासागर उमड़ पड़ा। उसकी आँखों से गंगायमुना की निरंतर धारा बहने लगी जैसे-जैसे उसको अपने पति आभानरेश चंद्र का स्मरण होने लगा, वैसे-वैसे उसका दु:ख और बढ़ता हो गया लम्बी उसाँसे छीड़ती हुई वह जिस दिशा में नटराज शिवकुमार उसके पति "कालकर चला गया था, उसी दिशा की ओर देखती हुई न जाने कितनी देर तक बैठी रही। जिस दिशा की ओर वह देख रही थी, उसी दिशा से पवन का झोंका आया / गुणावली मन में यह विचार आया कि यह पवन अवश्य ही मेरे पति के शरीर को छू कर आई है। इस वन के स्पर्श से उसके मन को बहुत शांति मिली और वह आनंदित हो गई। जिसे जिसके प्रति प्रेमभाव होता हैं, उसे उस प्रेमी व्यक्ति की सभी वस्तुएँ बहुत प्रिय गती है। भले ही वह वस्तु कोई छबि हो, मूर्ति हो, पादुका हो, अँगूठी हो, वस्त्र ही या उस प्रिय [क्ति का कोई स्नेही-संबंधी या मित्र हो। इसीलिए रानी गुणावली को अपने प्रिय पति के शरीर को स्पर्श करके आई हुई पवन बड़ी भली और प्रिय लगी। ऐसे ही परमात्मा सीमंधर स्वामी आदिको या परमात्मा की किसी ते या मंदिर को स्पर्श कर आनेवाली पवन क्या कभी हमें प्रिय लगती है ? यदि मंदिर, मूर्ति, 2, संघ, तीर्थ और धर्मशास्त्र हमें अत्यंत प्रिय हो, तो उनको देख-देखकर हमें वास्तव में तनी खुशी होनी चाहिए! मनुष्य के मन में किसके प्रति प्रेम भाव है इसके आधार पर मनुष्य को उत्तमता या धमता निर्धारित होती है। यदि मनुष्य के मन में देव, गुरु, धर्म के प्रति प्रेम हो, तो ऐसे मनुष्य . उत्तम कहा जाएगा, इसके विपरीत अगर मनुष्य सिर्फ़ कंचन-कामिनी-कुटुंब से प्रेम रखता - तो ऐसे मनुष्य को अधम समझना चाहिए ! P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust