________________ 146 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र इधर नटराज शिवकुमार ने भो वहाँ से अन्यत्र प्रयाण करने की तैयारी की और अपना सारा सामान इकट्ठा कर शिवकुमार शिवमाला तथा अपने अन्य साथियों को साथ लेकर तासबाजे बजाता हुआ राजमार्ग पर से होकर चल पड़ा। ताशे-बाजे की आवाज सुन कर अपन महल की अटारी में आकर खड़ी हुई गुणावली ने शिवमाला के सिर पर होनेवाले सोने के पिजड़ में अपने पतिदेव मुर्गे को देखा। जब तक उस मुर्गे को देखने के लिए द्दष्टि पहुँचती थी, तब तक गुणावली सुधबुध भूल कर एकटक द्दष्टि से देखती ही रह गई। हमारे मन में जिसके प्रति प्रेम का भाव होता है उसे देखते रहने से आँखें कभी तृप्त नहीं होती हैं / स्नेह का रास्ता सचमुच कुछ अनोखा ही होता है। कुछ देर बाद जब नट मंडली का यह काफिला आँखों से ओझल हो गया और मुगा दीखना बंध हुआ, तब गुणावली की दशा पानी से बाहर निकाली गई मछली की तरह हो गई। वह पति के विरह से तिलमिलाती रही, तड़पती रही, आँखों से आंसू बहाती रही, रोती रहा। जब कोई मांत्रिक शेषनाग के मस्तक पर होनेवाली मणि छिन लेता है, तब शेषनाग की जो दशा होती है, वही दशा इस समय गुणावली की हो गई थी। गुणावली के मस्तक की मणि राजा चद्र (इस समय मुर्गा) को वीरमती ने उससे छीन लिया था। पति के विरह की वेदना गुणावला क लिए असह्य हो रही थी। कुछ ही देर में वह मूर्च्छित धरती पर गिर पड़ी। सुध बुध भूल कर, होश खो कर वह कितनी ही देर तक वैसे ही पड़ी रही। गुणावली को बेहोश अवस्था में भूमि पर पड़ी हुई देख कर उसकी सखियाँ धबरा गई और उसके पास दौड़ते हुए आई। उन्होंने शीतोपचार से गुणावली की मूर्छा भंग की / अब गुणावली फिर स्वस्थ होकर उठ बैठी। सखियों ने गुणावली को तरह तरह से धोरज बंधा कर शांत किया। गुणवली के मूर्च्छित होने का समाचार जब वीरमती के कानों तक पहुँचा, तो वह भी गुणावली के महल में उसके पास चली आई / गुणावली के दुःख का कारण पूछ कर उसका सांत्वना देने की बात तो दूर रही, बल्कि वह तो गुणावली से विपरीत ढंग की बात कहने लगा, "आज नटराज शिवकुमार के साथ चंद्र भी चला गया, यह बड़ी आनंद की बात हुई। अब हमारे स्नेह और स्वेच्छाविहार में कोई बाधा नहीं पड़ेगी। अपनी इच्छा से अब हम जब और जहा चाहे, जा सकेंगी। बहू, मैं यह मानती हूँ कि अब तेरे और मेरे बीच स्नेहसंबंध बढ़ने के लिए अधिक अवसर मिलेगा।" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust