________________ = श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 137 / भरत का नाटक दिखाने का निर्णय किया गया। नाटक के वाद्यों को ध्वनियों से आकाश गूंज = उठा। - वाद्यों की आवाज सुन कर रानी गुणावली भी सोने के पिंजड़े में बंद मुर्गे को लेकर महल क गवाक्ष में नाटक देखने के लिए आकर बैठी। नाटक का खेल समाप्त होने के बाद पहले की तरह नटराज शिवकुमार राजा चंद्र की जयजयकार करता हुआ और उनका गुणगान करता हुआ रानी वीरमती के पास आया और इनाम की याचना करने लगा। लेकिन चंद्रराजा की जयजयकार सुन कर नाराज हुई रानी वीरमती ने नटराज की कला की प्रशांसा भी नहीं की और - उस इनाम भी नहीं दिया। जब वीरमती ने इनाम नहीं दिया, तब उससे पहले इनाम देने की किसी = कि हिम्मत नहीं हुई। नाटक का खेल देखने के लिए आए हुए नगरजन सोचविचार में डूब गए कि रानी वारमतो बार बार ऐसा असंगत व्यवहार क्यों कर रही है ? इन कलाकारों को वह इनाम क्यों नहीं देती है ? समझ में नहीं आता कि आखिर उसके मन में क्या है ? नटराज शिवकुमार ने चारों ओर आशाभरी दृष्टि से देखा, लेकिन वहाँ उपस्थित सभी दर्शक मुँह नीचे करके बैठे थे। चंद्रमा के बिना होनेवाली अंधेरी रात का वातावरण सर्वत्र व्याप्त था। लेकिन इस निराशामय वातावरण में आशा की किरण की तरह सोने के पिंजड़े में बंद मुर्गे के रूप में राजा चंद्र था। चंद्रराजा पिंजड़े में मुर्गे के रूप में पड़ा हुआ था और वहाँ से नटराज का निराशा और उसाँसो का बरावर निरीक्षण कर रहा था / नटराज बार बार चंद्रराजा की जयजयकार करता हुआ खड़ा था। कल की तरह आज भी उसने अपने पिंजड़े में से अपनी चोच की सहायता से रत्नजडित कंधी और कटोरा नीचे फेंके। लाखों रुपए मूल्य को रत्नजडित की और कटोरा नीचे आते ही नटराज ने उन्हें अपने हाथों से पकड़ लिया और वह आनंदित होकर जोरशोर से चंद्रराजा का गुणगान करने लगा। यह दान दिया हुआ देखते ही अब अनेक दर्शकों ने भी नटराज पर दान की वर्षा कर दी। इतना सारा दान इनाम में पाकर अपने परिश्रम को सार्थक होता देखने से नटराज शिवकुमार बहुत खुश हो गया। लेकिन नटराज पर इनामों की वर्ष होते हुए देख कर रानी वीरमती एड़ी से चोटी तक __ अदर-बाहर जल उठी। वीरमती ने जिस उद्देश्य से नाटक के कार्यक्रम का दूसरी बार आयोजन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust