________________ 138 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कराया था वह सफल हो गया। सबसे पहले इनाम का दान करनेवाले को वह खोजना चाहती थी, उसमें उसे सफलता मिल गई। क्रोधाविष्ट हुई रानी वीरमती अपने स्थान से उठ खड़ी हुई और हाथ में तलवार लेकर निकट ही पिंजड़े में बंद मुर्गे के पास आपहुँची। उसने क्रोध से भर कर कहा, “हे दुष्ट, तुझे अब भी शर्म नहीं आती है ? तूने मुझसे पहले इनाम क्यों दिया ? मुर्गा बनने के बाद भी तू अपनी धुष्टता नहीं छोड़ता ? खैर, ले अब मेरी तलवार की धार का स्वाद चख ले। अब मैं तुझे जिदा नहीं छोडूंगी, नहीं छोड़ेंगी!" इतना कह कर रानी वीरमती अपनी तलवार के प्रहार से मुर्गे के शरीर के दो टुकड़ करने ही वाली थी। प्रहार करने के लिए उसका हाथ ऊपर उठा और इतने में गुणावली ने बीच में पड़ कर अपनी सास का हाथ तुरन्त पकड़ लिया। उसने हाथ जोड़ कर अपनी सास से कहा, "हे माताजी, ऐसा क्रोध मत कीजिए। इस पंछी की भला दान देने की बुद्धि कहाँ से होगी ? दान देने में यह बेचारा पंछी क्या समझता है ? वह पिंजड़े में जब पानी पी रहा था तो कंधी और कटोरा नीचे गिर गए और उसी को अपनी कला के लिए इनाम समझ कर नटराज शिवकुमार ने ग्रहण कर लिया। इसमें उस बेचारे का क्या अपराध है, उसका क्या दोष है ? हे माता, पिंछियो के पास विवेकबुद्धि का अभाव ही होता है। इसलिए एक निराधार पंछी पर इस तरह क्रोध करना उचित नहीं है / हे माताजी, पंछी तो सिर्फ अपना पेट भरना ही जानते हैं।" .. सास और बहू के बीच जब यह विवाद प्रारभ हुआ, तो उसे सुनकर लोगों की भीड़ वहा - इक्कट्ठा ही गई। उन सबने बीच में पड़ कर मुर्गे के रूप में होनेवाले चंद्र राजा के प्राण बचा लिए। . / गुणावली का समयानुकूल कथन सुन कर रानी वीरमती का क्रोथ कुछ ठंडा पड़ गया। | रानी वीरमती गुणावली के पास आई थी, वहाँ से उठ कर वह चली और आकर राजसभा में सिंहासन पर बैठ गई / रानी वीरमती को खुश करने के लिए नटराज शिवकुमार ने फिर से अपनी नाटयकला दिखाना प्रारंभ कर दिया। इस नाटकमंडली की प्रमुख स्त्री पात्र शिवमाला पंछी की बोली जानती है, यह बात चंद्र राजा को ज्ञात थी। इसलिए मुर्गे के रूप में होनेवाले चंद्र राजा ने पिंजड़े में से जोर से पंछी की P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust