________________ 136 श्री चन्द्रराजर्षि चरि= जैसे युद्ध क्षेत्र पर राजा के स्वयं उपस्थित होते हुए भी राजा की सेना के वीर सैनिक शत्रुसेना को अपना पराक्रम दिखाने के लिए जान की बाजी लगा कर शत्रुसेना पर टूट पड़त। और युद्ध क्षेत्र पर लड़ते-लड़ते काम भी आ जाते हैं - वीरगति भी प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन उसके पराक्रम से, बलिदान से विजयलक्ष्मी तो राजा को ही जयमाला पहनाती है। उसी प्रकार भले ही आपके किसी दानशूर सेवक ने नटराज को सबसे पहले इनाम दिया लेकिन उससे कीर्ति आपकी ही बढ़ी हैं न ? इसलिए आप क्रोध त्याग दीजिए और शात ह जाइए। माता के स्थान पर यदि पुत्र किसी की दान दे तो कीर्ति तो उस सुपुत्र की माता की ही गाः जाती है न ? उसी प्रकार हे राजमाता, आप इस आभापुरी की सारी प्रजा की माता है / प्रज आपके पुत्र के समान है। इसलिए पुत्रों के दान से माता को नाराज होने का क्या कारण ह. उल्टा, पुत्रों के दान को देख कर माता को प्रसन्न होना चाहिए और पुत्रों के सत्कर्म को सवय उचित मान कर माता को उसका सम्मान करना चाहिए।" बुद्धिमान् सुबुद्धि मंत्री ने विविध युक्तियों से वीरमती को समझाने का प्रयत्न किया | लेकिन वीरमती का क्रोध शांत नहीं हुआ, बल्कि बढ़ता ही गया। वीरमती को अनंतानुबंधी आर तीव्रतम क्रोधकषाय मंत्री के समझदारी भरे वचनों से कैसे शांत होता ? वीरमती राजसभा से उठकर अपने महल में लौट भाई। वह आकर सुखशय्या परल तो गई, लेकिन क्रोधपिशाच ने उसके मन पर ऐसा अधिकार कर लिया था कि बहुत कोशि करने पर भी उसे नींद नहीं आई। चिंतातुर मनुष्य को नींद कहाँ से और कैसे आएगा ? वीरमती के दिमाग पर बस एक ही भूत सवार हो गया था कि मुझसे पहले नटराज के दान देने का साहस करनेवाला कौन था ? मुझे उस दानवीर को हर संभव कोशिश करके खोर निकालना पड़ेगा। इस तरह से विचार करते-करते सारी रात बीत गई और प्रातःकाल / गया। रानी वीरमती राजसभा में आई और उसने शिवकुमार को उसकी मंडली के साथ बुर कर अपना नाटक फिर से खेलने को और कला दिखाने की आज्ञा दी। मंत्री ने रानी की आप के अनुसार तुरंत नटराज को बुलाया और अपने नाटक का खेल फिर से दिखाने को उस कहा। नटराज बहुत बड़ा पुरस्कार मिलने की आशा से यह आमंत्रण मिलने पर आनंद साग में डूब गया। उसने तुरन्त अपने कलाकारों को नाटक दिखाने के उद्देश्य से तैयार होने को का P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust