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________________ 128 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र आभानरेश चंद्र के साथ लम्बे समय से बैर था . इसलिए उस राजा ने अपने मन में विचार किया के इस समय आभापुरी में एक स्त्री का राज्य है। अपने पुराने बैर का बदला चुकाने के लिए यह बड़ा अच्छा अवसर है। इसलिए उस राजा हेमरथ ने आभापुरी पर चढ़ाई करने के लिए तैयारा शुरू कर दी। हेमरथ राजा ने आभापुरी की ओर अपना एक दूत रवाना कर दिया / राजा हेमरथ ने वीरमती के नाम एक पत्र भी लिख कर दूत के साथ दिया था। दूत बड़ी शीघ्र गति से आभापुरी की राजसभा में जा पहुंचा और उसने अपने राजा का पत्र रानी वीरमती को दिया। पत्र पढ़ते ही वीरमती की आँखें क्रोध से लालंलाल हो गई। सिंहनी की तरह गर्जना करते हुए रानी वीरमती ने हेमरथ राजा के दूत से कहा, "हे दूत, तेरे देश के राजा ने मेरा राज्य छीन लेने के लिए यहाँ आभापुरी आने की बात अपने पत्र में लिखी है। अब तू जल्द से जल्द अपने राजा के पास चला जा और उसे मेरा यह संदेश देदे कि "तुझे वीरमती ने यथाशीघ्र आभापुरी पधारने को कहा है। यदि तूने उत्तम रानी के पेट से जन्म लिया है, सच्ची माता का दूध तूने पिया हो और यदि तू सच्चे क्षत्रिय का बच्चा हो, तो बिना विलम्ब किए तू अपनी सारी सेना लेकर आभापुरा आ जा और तेरा पराक्रम दिखा दे। ऐसा लगता है कि तू अपना भूतकाल भूल गया है / हमने इससे पहले कई बार तुझे पराजित कर दिया है और तुझे काला मुँह लेकर हर बार यहाँ से भागना पड़ा है। शायद यह अनुभव तेरे मस्तिष्क में से निकल गया है। लेकिन अच्छी तरह याद रख कि आभापुरी का राज्य छीन लेना कोई बच्चों का खेल नहीं है। यह बात तुझे तभी समझ में आ जाएगी, जब तू अपनी सेना लेकर मेरे साथ युद्ध करने के लिए आभापुरी आएगा। इस | बात को ओर ध्यान दे कि आभापुरी का राज्य छीन लेने की कोशिश में कहीं तुझे हिमाचल प्रदेश का राज्य न खोना पड़े। जैसे पतिंगे को अपनी मृत्यु के समय पंख फूटते हैं, लगता है वैसे ही | तुझे भी मृत्यु के अवसर पर मेरे साथ युद्ध करने की इच्छा निर्माण हो गई है। “हे दूत, यथाशाघ्र | चला जा और अपने राजा को मेरा यह संदेश दे दे।" इस तरह अत्यंत तीखे और चटपटे वचन सुना कर रानी वीरमती ने हेमरथ राजा के | दूत को रवाना कर दिया। दूत तुरन्त हिमाचल प्रदेश में चला आया और उसने अपने राजा का | वीरमती का दिया हुआसंदेश कह सुनाया। दूत ने अपने राजा को अपना यह अभिप्राय मा | सुनाया कि, 'महाराज, आप वीरमती को एक सामान्य स्त्री मत मानिए। वीरमती तो वीर पुरुष को भी लाँघ जानेवाली वीर क्षत्रियाणी है। इसलिए बलवान के साथ झगड़ा मोल लेने से पहल खूब विचार कीजिए। आपसे मेरी यह विनम्र प्रार्थना है।" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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