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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र __इसपर मंत्री ने फिर से वीरमती से कहा, "हे राजमाता, यह मुर्गा मूल्य चुका कर खरीदा हुआ-सा नहीं लगता है। राज्य की हिसाब-किताब की बही में कहीं भी यह खर्च खुले रूप में बताया नहीं गया है। राज्य की ओर से जिन-जिन वस्तुओं को खरीदा जाता है, उनका खर्च राज्य की हिसाब की बहियों में लिखा जाता है। इसलिए यह समझ में नहीं आता है कि यह मुर्गा - यहाँ कहाँ से आया है ? माताजी, आवक-जावक का खाता तो मैं ही सँभालता हूँ।" मत्री सुबुद्धि की चतुराईपूर्ण बात सुन कर क्रोध से आँखें लाल करके कठोर वाणी से वारमती बोली, “हे मंत्री, तू एक सामान्य बात में मुझसे बार बार प्रश्न क्यों करता है। क्या इस राज्य में हमें इतना भी अधिकार नहीं है कि हम कोई मामूली चीज भी मंगवाए तो उसे तेरी बहियों में दर्ज कराना ही चाहिए ? इस मुर्गे को मैंने अपना आभूषण देकर खरीदा है, इसिलिए उसका खर्च तेरी बहियों में नहीं लिखा गया है / दूसरी बात यह है कि मुझे तेरी ऐसी बातें बिलकुल पसंद नहीं है, इसलिए इसके बाद बहत विचार करके बोलता जा, समझा ? यदि तू मुझसे फिर कभी इस मुर्गे के बारे में पूछा, तो तेरी अवस्था भी इस मुर्गे जैसी हो जाएगी!" कहा भी गया है कि 'मौन सर्वार्थ साधनम् !' इसलिए समय देख कर मंत्री सुबुद्धि सावधान हो गया। मंत्री ने जब महल में दूसरी ओर दृष्टि डाली तो उसने देखा कि वहाँ एक कोने में बैठी रानी गुणावली रो रही है। सास के भय के कारण गुणावली एक शब्द भी बोलने में असमर्थ थी। इसलिए गुणावली ने अपनी हथेली पर लिख कर मंत्री को बताया 'इस पिंजड़े में बंद मुर्गा अन्य कोई नहीं, बल्कि मेरे पति राजा चंद्र हैं।' . __ मत्रा सुबुद्धि पर सारा रहस्य खुल गया। इसलिए वह तुरन्त वहाँ से निकल कर अपने घरका और चला गया। इस घटना के बाद धीरे धीरे यह बात आभापुरी में चारों ओर फैल गई कि वारमती ने चंद्र राजा को मुर्गा बना दिया है।' लेकिन वीरमती के पास दैवी विधाऐं होने के कारण किसी में वीरमती के पास जाकर उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई। वीरमती के पास विद्यमान् होनेवाली अद्भुत विद्याओं की प्रशांस बार-बार सुन कर अनक राजाओं ने वीरमती की आज्ञा शिरोधार्य मान ली / लगभग सभी अन्य राजा-महाराजा उसका देवी विद्या से भयभीत होकर उसकी कृपापात्र बनने की कोशिश करते थे। वीरमती की कृपा पाने में ही वे अपनी खैरियत मानते थे। लेकिन हिमाचल प्रदेश के एक राजा हेमरथ का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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