________________ 126 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र आपकी राज्य-कारोबार चलाने की पद्धति अत्यंत उत्तम है। राज्य के संचालन में आपके जला सफलता राजा को भी प्राप्त नहीं हो सकती। राज्य में आपकी ऐसी धाक जम गई है कि पूर राज्य में कहीं चोर और चोरों का नाम भी सुना नहीं जाता है। शत्रु राजा भी अपनी शत्रुता छोड़ कर आपके साथ मित्रता का व्यवहार करने लगे हैं। हे माताजी, यदि आप कहीं चमड़े का सिक्का भी प्रचलित कर दें, तो सब लोग उसे चुपचाप स्वीकार कर लेंगे। राज्य का ऐसा सुदर प्र१५ इससे पहले न मैंने कभी देखा है, न सुना है। आप स्त्री होते हुए भी आपमें कोई कमी नहीं दिखाई देती है। पृथ्वी या धरती भी स्त्री जाति और इस पृथ्वी का राजा भी एक स्त्री ही ! बड़े-बड़ राजा भी आपकी आज्ञा शिरसावंद्य मान लेते हैं और उसका पालन करते हैं। इसलिए हे राजमाताज, आप राजवर्ग में अत्यंत पुण्यवान् हैं। आपकी महिमा का कोई पार नहीं पा सकता है।" वीरमती को खुश रखने के उद्देश्य से सुबुद्धि मंत्री ने खूब नमक-मिर्च लगा कर बात का, बहुत चापलूसी की। सुबुद्धि मंत्री का लगाया हुआ यह मख्खन वीरमती को बहुत पसद आया यह सब करते समय मंत्री के मन में एकमात्र यही विचार था, चाहे जो कुछ भी करके क्या नह' मैं वीरमती को प्रसन्न कर लूँ और मेरे राजा चंद्र को मुर्गे की योनि में से फिर मनुष्ययोनि मल / कर उन्हें फिर से राज्य करनेवाला राजा बना हुआ देखू / ___ लेकिन जब कर्मसत्ता का कोप होता है, तब उसके सामने किसीकी चतुराई और होशिया काम नहीं देती है। फिर सुबुद्धि मंत्री को चतुराई कैसे काम देती ? एक बार मंत्री सुबुद्धि के मुँह से अपनी भूरिभूरी प्रशंसा सुनकर अत्यंत प्रसन्न वीरमती ने मंत्री से कहा, "हे मंत्री, मैं तुझ पर प्रसन्न हो गई हैं। इसलिए अगर तू मुझस के काम कराना चाहे, तो वह काम खुशी से बता दे . मैं तुरन्त तेरा काम पूरा कर दूँगी / तूम कल्पवृक्ष ही समझ ले और जो माँगना हो, वह संकोच त्याग कर माँग ले।" राजमाता वीरमती के मुंह से निकली हुई यह बात सुनते समय मंत्री सुबुद्धि की / पिंजड़े में बंद पड़े हुए मुर्गे पर पड़ी। मंत्री ने अनजान जानकर वीरमती से पूछा, “हे राजमा पिंजड़े में यह कौन है ? कोई देवता है या कोई पालतू पंछो है ?'' इसपर वीरमती ने उत्तर दिया, “हे मंत्री, यह तो मेरी बहू गुणावली के मनोरंजन के नि मूल्य चुका कर खरीदा गया सुर्गा है।" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Truss