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________________ 125 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र जमाता की दी हुई आज्ञा का उल्लंघन करेगा उसका या तो वध किया जाएगा या उसे दशनिकाला कर दिया जाएगा। दूसरी घोषणा यह भी कर दो की जिन्हें आभापुरी में रहना अच्छा न लगता हो और यमपुरी में रहने के लिए जाने की इच्छा हो, वे ही राजमाता की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस करें।" सुबुद्धि मंत्री ने राजमाता की आज्ञा शिरसा वंद्य मानकर तुरंत ही सारी आभा नगरी में डिडोरा पीट कर घोषणाएँ करा दी। मंत्री द्वारा कराई हुई घोषणाएँ सुन कर नगरजन आश्चर्यचकित होकर आपस में बोलने लगे, संसार में स्त्री पर परुष के आज्ञा की बात तो कई बार देखी थी और सुनी भी थी, लेकिन ऐसी विपरीत आज्ञा का ढंग न कभी देखा था, न सुना था / एक इस आभापुरी को छोड़ कर संसार में अन्यत्र कहीं भी स्त्री राजा नहीं बनी होगी। यह तो स्त्री-राज्य का गया। इस राज्य की इस स्थिति के बारे में कोई शत्रराजा अथवा मित्रराजा भी सनेगा तो वह सोच में पड़ेगा कि क्या आभापरी के राजपरिवार में राज्य-कारोबार के भार को वहन करनेवाला कोई पुरुष नहीं बचा है, जो एक स्त्री को राज्य चलाना पड़ रहा हैं ? कुछ ही समय में चारों दिशाओं में, देशविदेश में यह खबर तुरंत फैल गई कि आभापुरी में वीरमती नाम की एक स्त्री (रानी) राज्य कर रही है। आभापुरी पर एक स्त्री राज्य कर रही है यह बात आभापुरी के नगरजनों को बिलकुल पसंद नहीं आई, लेकिन वीरमती के भय के कारण कोई उसका विरोध करने को तैयार नहीं हुआ। लोग जानते थे कि वीरमती के पास कई दैवी बल विद्यमान हैं / बलवान् को चुनौती देने को आखिर कौन तैयार होगा ? वीरमती बिना किसी विघ्न-बाधा के राज्यकारोबार देखने लगी। वीरमती के शासनकाल मराजा चद्र के नाम का उच्चारण करना भी मृत्यु को निमंत्रण देने के समान था इसलिए अब पारमता के सामने कोई चंद्र राजा का नाम लेने का भी साहस नहीं करता था। जिस मनुष्य को किसी के प्रति द्वेषभाव होता है, उसे उस व्यक्ति का नाम सुनना भी अच्छा नहीं लगता है, बल्कि उसका नाम सुनते ही उस मनुष्य का मुख क्रोध से तमतमा उठता है, लाल-लाल हो जाता है। सुबुद्धि मंत्री बुद्धिमान् था। इसलिए उसने वीरमती को खुश रखने के लिए चंद्र राजा का नाम भी मुंह से लेना छोड़ दिया। एक बार सुबुद्धि मंत्री ने वीरमती से कहा, "राजमाताजी, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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