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________________ 124 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र आया, तो आप मेरे ही गले पड़ गई ! लेकिन ऐसा करके आप मुझे उल्लू नहीं बना सकती !आपने इल्जाम ही लगाया है तो फिर बताइए कि मैंने किस कारण से और कैसे राजा चंद्र का खून किया ?" इसपर वीरमती मंत्री से बोली, “हे मंत्री, तू चतुर होकर भी क्या इतनी सामान्य-सी बात नहीं समझ सकता ? अब के बाद फिर कभी तू मुझसे चंद्र के बारे में बात करने का साहस मत कर / यदि तू फिर कभी मुझसे चंद्र राजा के बारे में पूछेगा, तो तुझे उसका भयंकर परिणाम भुगतना पड़ेगा। आज के बाद फिर कभी तू मेरे सामने चंद्र का नाम भी मत ले। आज से राजा चंद्र के स्थान पर मुझे ही राजा मान कर तुझे मेरी ही आज्ञाओं का पालन करना होगा। यदि तू मेरे इस कार्य में बाधा नहीं डालेगा, तो मैं तुझे मंत्री पद पर बना रखूगी। अन्यथा, मैं तुझे मंत्री पद पर से हटा दूंगी और तेरे स्थान पर नए मंत्री को नियुक्त कर दूंगी। तू सयाना है, बुद्धिमान है। इसलिए मेरी इस बात को सुनकर सबकुछ समझ गया होगा। राज्य का कारोबार चलाने में मैं स्वयं समर्थ हू" / इसलिए मुझसे किसी को कुछ कहने की या मुझे कुछ सुनाने की बिलकुल आवश्यकता नहीं है। मेरी आज्ञा का ठीक ढंग से पालन करने में ही तेरा खैरियत है।" सुबुद्धि मंत्री वीरमती के स्वभाव की विचित्रता से पूरी तरह परिचित था / इसलिए वीरमती की ये बातें सुन कर मंत्री ने विचार किया, "इस समय इस दुष्ट स्त्री के साथ हिलमिल कर रहने में ही मेरा, राज्य की प्रजा का और राजा चंद्र का भला है। यदि मैं इसका विरोध करने * लगूं, तो यह दुष्टा मुझ पर मिथ्या इल्जाम लगा कर शायद मुझे भृत्युदंड भी दे सकती है।" ऐसा विचार करके और वीरमती को कही हुई बात स्वीकार करके सुबुद्धि मंत्री ने | वीरमती से कहा, "हे राजमाता, आज से जैसा आप कहेंगी, वैसा ही होगा। आपकी आज्ञा मेरे लिए शिरसा बंध है।" मंत्री के मीठे वचन और विनम्रताभरी बातें सुन कर वीरमती की खुशी का ठिकाना न | रहा / उसने सोचा, चलो, अच्छा हुआ, राज्य का मुख्य मंत्री तो मेरे पक्ष में आ गया। अब मेरा | बेड़ा अवश्य पार होगा। वीरमती मंत्री पर बहुत खुश हुई और बोली, “सारी आभा नगरी म / ढिंढोरा पीट कर प्रकट कर दो कि आज से राजा के सारे अधिकार राजमाता वीरमती ने. ग्रहण कर लिए हैं। इसलिए सभी प्रजाजनों को चाहिए कि वे राजमाता की आज्ञा का पालन करें। जो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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