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________________ 119 इन्द्रराजर्षि चरित्र सन्न होकर उसके सामने प्रकट हुई और कहने लगी, “हे बहन, तू बिलकुल चिंता मत तेरा पति तुझे अवश्य मिलेगा। लेकिन पति के साथ तेरा मिलन होने में अभी थोड़ी देर / / तेरे विवाह के संपन्न होने के सोलह वर्ष बाद ही तेरा तेरे पति आभानरेश से समागम / इसलिए इस समय त अपना जीवन परमात्मा की भक्ति करते रहने में व्यतीत कर / त्मा की भक्ति यह सभी प्रकार के शुभों को प्राप्त करा देनेवाली दूती है। यह सभी अशुभों ाश करनेवाली श्रेष्ठ शक्ति है।" इतना समझा कर और प्रेमला को आशीर्वाद देकर नदेवी अंतर्धान हो गई। शासनदेवी की कही हुई बातें प्रेमला ने अपने माता-पिता को बता प्रेमला को कही हुई बातें सुन कर प्रेमला के माता-पिता को अत्यंत हर्ष हुआ। नमस्कार-मंत्र के जप का प्रत्यक्ष प्रभाव देख कर राजकुमारी प्रेमला की नमस्कार-मंत्र के श्रद्धा बहुत बढ़ गई। अब वह पहले से भी अधिक प्रेम, विश्वास और श्रद्धा से नमस्कारका जप करने लगी। प्रेमला प्रतिदिन बिना चूके जिनमूर्ति के दर्शन करती, वंदन-पूजनतगायन करती और साथ-साथ यथाशक्ति तपश्चर्या भी करती थी। जब जप के साथ तप की शक्ति मिल जाती है तो सहस्त्रगना अधिक शक्ति उत्पन्न हो ना है। इस शक्ति में अगर ब्रह्मचर्य की शत्ति मिल जाए तो फिर भीषण भवसागर पार कर ना बहुत आसान बन जाता है। जहाँ जप-तप और शील का त्रिवेणी संगम हो जाता है, वहाँ 2 स्वयाशवरूप बन जाता है। जो मनष्य विपत्ति में नमस्कार-मंत्र का जप, तपश्चर्या और (ब्रह्मचर्य) इन तीनों की शरण में जाता है वह विपत्ति से मुक्त होकर ही रहता है। दिन व्यतीत होते जा रहे थे। प्रेमला श्रद्धापूर्ण भक्ति, जप-तप-शील के आचरण में नय थी। एक बार विमलापुरी में किसी देश से एक योगिनी पधारी। योगिनी वीणाधारिणी थी, का गोरा और सुडोल शरीर अत्यंत आकर्षक था ।उसने गेरुए रंग के सुंदर वस्त्र परिधान थे। उसके मुख पर वैराग्य की प्रभा का प्रकाश फैला हुआ था। उसका कंठ कोयल के कंठ तरह मधुर था। इसलिए जब वह हाथ में वीणा लेकर मधुर कंठ से गीत गाती, तो लोगों की उसके गीत को सुनने इकट्ठा हो जाती थी। उसे देख कर और उसका प्रभावकारी मधुर गीत कर लोग श्रद्धा और भक्ति के साथ उसे प्रणाम करते थे। सौंदर्य की प्रतिमूर्ति और कलाकुशल होनेवाली इस विदेशी योगिनी की कीर्ति सारी मलापुरी में फैल गई। एक बार प्रेमला भी इस योगिनी का मधुर गीत सुनने गई। इस समय P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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