SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 118 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र - नकरध्वज को ऋषिराज के दर्शन से हुआ। राजा ने अपने परिवार के साथ ऋषिराज की तीन बार प्रदक्षिण की और पूरी श्रद्धा से हर्षविभोर होकर ऋषिराज की वंदना की। राजा ने ऋषिराज से हाथ जोड़ कर विनम्रता से उनका क्षेमकुशल पूछा। ऋषिराज जंघाचारण ने राजा तथा उसके परिवार को 'धर्म लाभ' का आशीर्वाद दिया। 'धर्म लाभ' के आशीर्वाद से बढ़ कर इस संसार में अन्य कोई आशीर्वाद नहीं है / धर्म का लाभ यही सबसे बड़ा और श्रेष्ठ लाभ है। धर्म मय जीवन जीनेवाले ऐसे मुनिराज ही संसार के जीवों को सच्चे धर्म लाभ का आशीर्वाद दे सकते हैं। दर्शन-वंदन-आशीर्वाद के बाद राजा, उसका परिवार और नगरजन-सबके सब हाथ जोड़ कर विनम्रता से अपने-अपने स्थान पर बैठ गए। फिर मुनिराज जंधाचारण ने उन सबको धर्मोपदेश दिया। मुनिराज के धर्मोपदेश के परिणामस्वरूप अनेक भव्य (धर्म निष्ठ) जीवों को प्रतिबोध (जागरण) प्राप्त हुआ। उनके मन में जैन धर्म के प्रति अत्यंत आदर की भावना उत्पन्न हुई / इसलिए उनमें से अनेकों ने उसी समय वहीं ऋषिराज से यथाशक्ति व्रत नियम स्वीकार कर लिए। धर्म श्रवण की सच्ची सफलता व्रत-नियमों को सहर्ष स्वीकार कर लेने में ही है। ऋषिराज की धर्म वाणी से प्रभावित प्रेमला भी शुद्ध ‘समकित' धारिणी श्राविका बन * गई। समकित से मतलब है सच्चे और शुद्ध देव, गुरु और धर्म पर दृढ श्रद्धा रखना और उन्हीं को तारणहार मानकर उनकी यथाशक्ति सेवाटहल करना / यह समकित ही मोक्ष के मूल में है / मुनिजंघाचारण विमलापुरी में धर्मोन्नति करके अन्यत्र चले गए / मुनि के चले जाने के |बाद राजा मकरध्वज अपने परिवार और राजकुमारी प्रेमला के साथ अपने महल में लौट |आए / प्रेमला उसी दिन से जैन मंदिर मे जाकर प्रतिदिन जिनेश्वर देव के दर्शन-वंदन-पूजानामस्मरण आदि करने लगी। ‘नमस्कार-मंत्र के जप में वह विशेष प्रकार से तन्मय हो गई। वह जाग्रतावस्था में हरक्षण नमस्कार-मंत्र का जप करते हुए एक धर्मपरायण भक्त का जीवन जीते हुए अपने जीवन को सार्थक बना रही थी। नमस्कार-मंत्र यह एक अपूर्व कल्पवृक्ष और चिंतामणि रत्न के समान है / वह अपूर्व सुख का भंडार है। सभी प्रकार के दु:खों को हरण करनेवाले और सभी तरह का सुख प्रदान करनेवाले नमस्कार-मंत्र का पूरी श्रद्धा से तन्मयतापूर्वक जप करते रहने से शासनदेवी प्रेमला P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy