________________ चन्द्रराजर्षि चरित्र 117 मकरध्वज द्वारा आभानरेश की खोज : जब राजकुमारी प्रेमला पूरी तरह निरपराध साबित हुई, तब राजा मकरध्वज ने आभानरेश खिोज कराने का निश्चय किया। इस दृष्टि से राजा ने एक दानशाला खोली और उसके वाधिकार अपनी पुत्री को सौंप कर उससे कहा, "हे प्रिय पुत्री, मेरी बात सावधानी से सुन / का पानशाला में जितने भी मुसाफिर आएँगे. उन सबको त अपनी मर्जी के अनुसार अन्न दवा आदि का दान करती जा और उनसे आभानरेश के बारे में पूछताछ कर / यदि कोई साफिर तुझे यह बताए कि 'आभानरेश को मैं जानता हूँ ' तो त उस मुसाफिर को तुरन्त मेरे स ले आ।" पिता के आदेश को शिरसा वंद्य मान कर प्रेमला हररोज दानशाला में बैठने लगी। मसाला म दान लेने के लिए आनेवाले मुसाफिरों को वह यथेच्छ दान देती थी और उनसे पूछती थी कि, "तुम देशदेशांतर में धमते हो। क्या तम में से किसी ने आभानगरी देखी है ? क्या उसआभानगरी के राजा चंद्र का नाम तमने सना हैं?" बेचारी प्रेमलाको मुसाफिरों से निराशाजनक उत्तर मिलता था, "नहीं राजकमारीजी हम कभी उस दिशा में नहीं गए / इसलिए न हम आभानगरी जानते हैं, न राजा चंद्र का नाम हपने कभी सुना है !" मुसाफिरों की ओर से ऐसा निराशाजनक उत्तर मिलने पर प्रेमला शोकसागर में डूब जाती थी। वह किसी एकान्त कमरे में चली जाती और आँखों से आँसू बहाते हुए अंत में शांति पा लेती थी। कर्मधीन जीवों के हाथ में इसके सिवाय और होता ही क्या है ? अपने मन के दुःख बात वह किसी से नहीं करती थी। अपना द:ख दसरे के सामने प्रकट करने में उसे बडी शर्म आती थी। इसी क्रम में एक बार विमलापरी के उद्यान में जंघाचारण ऋषि का आगमन हुआ / वनपालक ने आकर राजा को संदेश दिया, “महाराज, आपकी नगरी विमलापुरी के उद्यान में विविध प्रकार की कठोर तपश्चर्या के प्रभाव से जिन्होंने आकाश में उड़ान भर सकने सज शाक्त प्राप्त कर ली है, ऐसे साक्षात् तपोमूर्ति, धर्म मूर्ति, चारित्र्यमूर्ति और महाज्ञानी ऋषिराज पधारे है। उनके दर्शन-वंदन के लिए चलिए।" ऋषिराज जंधाचारण के आगमन का समाचार लानेवाले वनपालक को राजा मकरध्वज बहुत खुश होकर बड़ा इनाम दिया और उसे खुश कर दिया। फिर राजा मकरध्वज अपने परिवार के साथ प्रेमला को भी लेकर उद्यान में जा पहुँचे। जैसे मेघ को देख कर मयूर को, चंद्रमा का देख कर चकोर को आनंद प्राप्त होता है, वैसे या उससे भी अधिक आनंद धर्म प्रेमी राज P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust