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________________ 116 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र झूठमूट की बात कह कर, महाराज, हमने आपका विश्वासघात किया है / इसलिए हम चारा कड़ा-से-कड़ा दंड पाने के लिए योग्य हैं। आप अपनी मर्जी के अनुसार हमें दंड दे दीजिए।" चौथे सत्यवादी मंत्री की कही हुई बात सुन कर राजा को पूरा विश्वास हुआ कि मेरी बेटा राजकुमारी प्रेमला निरपराध है, निर्दोष है। प्राणी का पुण्योदय होता है, तो सबकुछ अनुकूल हो जाता है ! चारों मंत्रियों की बातें एकान्त में अलग-अलग सुनने के बाद राजा ने अपने सुबुद्धि मंत्री से कहा, "मंत्रीजी, इन चारों मंत्रियों ने लोभ में पड़ कर अत्यंत अनुचित काम किया है / लोभ सभी अनुचित कार्यों का जनक होता है। लोभाधीन मनुष्य कोन-सा पाप नहीं करता ? इसलिए इस घटना में मुझे लोभ में अंध बने हुए ये चारों मंत्री उतने अपराधी नहीं लगते हैं; लेकिन इसमें सच्चा दोष तो सिंहलेश और उनके दुष्ट मंत्री हिंसक का ही है। इन दोनों-राजा और मंत्री न मिलकर जान-बूझ कर जन्मजात कोढ़ी राजकुमार को अपने स्पर्शमात्र से कोढ़ी बना देने का आरोप मेरी पुत्री-प्रिय पुत्री-प्रेमलालच्छी पर लगाया है। उन दोनों की यह कोशिश अत्यंत निम्न दर्जे की है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अपने चारों मंत्रियों को निर्दोष मानकर छोड दूं / लेकिन तुम मुझे यह सुझाओ कि सच्चे अपराधी सिंहलनरेश और उनके दुष्ट हिंसक मंत्री को क्या दंड दिया जाए ? सुबुद्धि मंत्री ने सोच-समझकर राजा को बताया, “महाराज, इस संबंध में मेरी वह सलाह है कि आप सबसे पहले प्रेमला के सच्चे पति आभानरेश की चारों ओर खोज कराइए / और जब तक प्रेमला के सच्चे पति आभानरेश चंद्र के बारे में कोई समाचार न मिले, तब सिंहलनरेश, उनकी रानी, कोढ़ी राजकुमार कनकध्वज, उसकी उपमाता और दुष्ट हिंसक भत्रा को कैद में रखा जाए और बरात में आए हुए अन्य लोगों को विमलापुरी से उनके गाँवों की और रवाना कर दिया जाए।" = सुबुद्धि मंत्री से हुए गुप्त सलाह-मशविरे के बाद राजा ने सिंहलनरेश आदि पाँच लोग को पकड़ कर कैदखाने में रख दिया ! अत्यंत उग्र पुण्य या पाप का फल पहले यहीं प्राप्त होत / है / कैद में पड़े हुए पाँचों जन अपने कुकर्म का फल भोगने लगे। उन्हें अपने किए हुए = दुष्कर्मोका बहुत पश्चाताप हुआ। लेकिन अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत = देर से सूझा हुआ सयानापन किस काम का होता है ? P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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