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________________ / श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र है और आप से मिलने के लिए बहुत उत्कंठित है। इसलिए आप संदेश मिलते ही तुरंत यहाँ पधारने की कृपा कीजिए। आशा है, आप शीघ्र यहाँ पहुँच जाऐंगे।" राजा का संदेश लेकर दूत तुरंत राजा पद्मशेखर के दरबार में पहुँचा / उसने राजा को अपने स्वामी राजा वीरसेन का संदेश दिया। संदेश पाते ही राजा पद्मशेखर तुरन्त निकल कर आभापुरी में आभानरेश के दरबार में आ पहुँचा। बहुत दिनों से बिछडे हुए पिता-पुत्री का स्नेहमिलन हुआ। चंद्रावती ने अपने पिता को विस्तार से बताया कि उसका अपहरण किसने और कैसे किया और उस दुष्ट योगी के जाल में से उसे आभानरेश ने केसे मुक्त किया और वे उसे अपने दरबार में कैसे ले आए। अपनी कन्या के मुख से सारी बातें सुन कर राजा पद्मशेखर के हृदय में हर्ष की हिलोरें उठीं। . राजा पद्मशेखर ने राजा वीरसेन के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और कहा, “हे परोपकारी पुरुष ! आपने मेरी प्रिय पुत्री के प्राणों को रक्षा कर मुझ पर जो उपकार किया है उसका बदला चुकाना मेरे लिए कभी संभव नहीं है / इस काम के लिए मैं आपका सदा ऋणी रहूँगा / हे राजन् ! मेरे मन में यह अत्यंत प्रबल कामना है कि आप मेरी इस कन्या का पाणिग्रहण कर मुझे उपकृत करें / हे राजन् ! आए मेरी इस प्रार्थना को अवश्य स्वीकार कर लीजिए। मेरे दरबार में आए हुए एक महान ज्योतिषी ने भी कहा था, 'तुम्हारी कन्या का पति आभानरेश ही होगा। 'ज्योतिषी की इस भविष्यवाणी को आप अवश्य सफल बना दीजिए। मेरी प्रार्थना को स्वीकार कीजिए।" राजा वीरसेन ने राजा पद्मशेखर की अत्यंत आग्रहभरी प्रार्थना सुन कर चंद्रावती को अपनी पत्नी बनाना स्वीकार कर लिया। विवाह की तैयारियाँ प्रारंभ हुई / ज्योतिषी के बताए हुए एक शुभ मुहूर्त पर राजा वीरसेन ने चंद्रावती को अपनी रानी बना लिया। राजा के विवाह समारोह की धूमधाम से आभापुरी की सारी जनता को बहुत आनंद आया लेकिन राजा की पटरानी वीरवती को आनंद के स्थान पर बहुत दुःख हुआ। वीरमती थी ही दुष्ट प्रवृत्ति की स्त्री, इसलिए वह खुश नहीं हुई, बल्कि दु:खी हो गई। सूर्य के उदित होने से उल्लू के कुल को संताप हुआ तो उसमें सूर्य का क्या अपराध ? चंद्रोदय से चोरों के पेट में पीडा हुई तो उसमें चंद्रोदय का दोष थोड़ा ही है ? ठीक इसी प्रकार रानी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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