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________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र है। मैं ने जान लिया के अब इस योगी के मायाजाल से मुक्त होना असंभव है और मुझे अपनी - मृत्यु सामने दिखाई देने लगी। मृत्यु के भय से मैं जोरशोर से रोने लगी। मेरे प्रबल पुण्योदय के कारण ही आप बिलकुल उचित समय पर मेरे प्राणों की रक्षा करने के लिए यहाँ आ पहुँचे। इसके बाद जो कुछ घटित हुआ, वह सब तो आप जानते ही हैं। हे गुणसागर ! हे प्राणनाथ ! आपने किसी अन्य स्त्री की नहीं बल्कि अपनी भावी पत्नी की ही रक्षा की है ! आपने मुझसे पूछा, 'तू किसकी पुत्री है और मैं इस योगी के शिकंजे में कैसे फंस गई ?' में ने इसका उत्तर पूरे विवरण के साथ आपको दे दिया है। ऐसे प्राणघाती संकट में प्राणनाथ के सिवाय मेरी रक्षा अन्य कौन कर सकता था ?' चंद्रावती की बातें सुन कर राजा वीरसेन मन ही मन बहुत हर्षित हो गया। अब राजा वीरसेन ने चंद्रवती को अपने साथ ले लिया और वह उसी मार्ग पर से लौटा, जिस मार्ग से उसने पाताललोक में प्रवेश किया था। जिस क्षण राजा पाताललोक में से सरोवर के उपर आया, उसी क्षण उसकी सेना भी राजा के पदचिन्हों का पीछा करती हुई सरोवर के किनारे पर आ पहुँची। सेनानायक ने घोड़े पर से उतर कर राजा को प्रणाम किया। उसने राजा से उसका कुशलसमाचार पूछा। राजा ने सेनानायक को सारी बातें विस्तार से बताई / राजा की बातें सुन कर हर्षित हुए सेनानायक ने राजा वीरसेन से कहा, "महाराज, आपको फिर से देख कर आज हमने नवजीवन पा लिया है / लेकिन महाराज, आपके साथ यह देवांगना जैसी रुपवती सुंदरी कौन है ? यह सुंदरी आपको कहाँ मिली ?" राजा ने सेनानायक की जिज्ञासा भी विस्तार से सारी कहानी बता कर शांत की। अब न केवल सेनानायक, बल्कि सारी सेना अत्यंत हर्षित होकर राजा की जय जयकार करने लगी। राजा वीरसेन अब उस रुपसुंदरी चंद्रावती को साथ लेकर पूरी सेना के साथ अपनी नगरी आभापुरी में लौट आया। आते ही राजा ने अपने एक निजी दूत को संदेश के साथ तुरंत राजा पद्मशेखर के पास भेजा। राजा ने संदेश भेजा था, “आपकी पुत्री चंद्रावती यहाँ आई है P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036424
Book TitleChandraraj Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherSaudharm Sandesh Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size225 MB
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